-पुस्तक श्री हनुमान चालीसा
-लेखक श्री तुलसीदास जी
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 32
-पुस्तक श्री हनुमान चालीसा
-लेखक श्री तुलसीदास जी
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 32
-पुस्तक सुंदरकांड
-लेखक श्री तुलसीदास जी
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 96
-पुस्तक एक संत की अमूल्य शिक्षा
-लेखक श्री राजेंद्र कुमार धवन जी
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 88
-पुस्तक क्या आप ईश्वर को मानते हो
-लेखक श्री राजेंद्र कुमार धवन जी
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 40
वेद के अनुसार व्यक्ति के भीतर पुरुष ईश्वर ही है। परमेश्वर एक ही है। वैदिक और पाश्चात्य मतों में परमेश्वर की अवधारणा में यह गहरा अन्तर है कि वेद के अनुसार ईश्वर भीतर और परे दोनों है जबकि पाश्चात्य धर्मों के अनुसार ईश्वर केवल परे है। ईश्वर परब्रह्म का सगुण रूप है।
-पुस्तक सुख पूर्वक जीने की कला
-लेखक स्वामी श्री रामसुखदास जी
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 48
-पुस्तक पंचामृत
-लेखक स्वामी श्री रामसुखदास जी
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 32
-लेखक स्वामी श्री रामसुखदास जी
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 256
-पुस्तक है नाथ! मैं आपको भूलुं नहीं
-लेखक श्री राजेंद्र कुमार धवन जी
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 80
-पुस्तक मानस-मुक्ता
-लेखक श्री राजेंद्र कुमार धवन जी
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 80
-पुस्तक अनुभव वाणी
-लेखक श्री स्वामी रामसुखदास जी
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 160