-लेखक स्वामी श्री रामसुखदास जी
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 256
-मूल्य 20/-
स्वामी श्री रामसुखदास जी महाराज ने
गीतोक्त जीवन की प्रयोगशाला से दीर्घकालीन अनुसंधान द्वारा अनन्त रत्नों का
प्रकाश इस टीका में उतार कर लोक-कल्याणार्थ प्रस्तुत किया है, जिससे
आत्मकल्याणकामी साधक साधना के चरमोत्कर्ष को आसानी से प्राप्त कर आत्मलाभ
कर सकें। इस टीका में स्वामी जी की व्याख्या विद्वत्ता-प्रदर्शन की न होकर
सहज करुणा से साधकों की कल्याणकामी है। विविध आकार-प्रकार, भाषा, आकर्षक
साज-सज्जा में उपलब्ध यह टीका सद्गुरू की तरह सच्ची मार्गदर्शिका है।
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