-पुस्तक अनुभव वाणी
-लेखक श्री स्वामी रामसुखदास जी
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 160
-मूल्य 20/-
सत्संगति करने से आदमी की विलक्षणता आती है।यह हमारे कुछ देखणे
में आई है।शास्त्रों के अच्छे नामी पण्डित हो,उनमें बातें वे नहीं आती है
जो सत्संग करणेवाळे साधकों में आती है।पढ़े-लिखे नहीं है,सत्संग करते
हैं।वे जो मार्मिक बातें जितनी कहते हैं इतनी शास्त्र पढ़ा हुआ नहीं कह
सकता,केवल पुस्तकें पढ़ा हुआ। शास्त्रों की बात पूछो,ठीक बता देगा।ठीक बता
देगा,परन्तु कैसे कल्याण हो,जैसे, जीवन कैसे सुधरे, अपणा व्यवहार कैसे
सुधरे,भाव कैसे सुधरे,इण बातों को सत्संगत करणेवाळा पुरुष विशेष समझता
है।तो सत्संगति सबसे श्रेष्ठ साधन है।सत्संगी के लिये तो ऐसा कहा है कि "और
उपाय नहीं तिरणे का सुन्दर काढ़ी है राम दुहाई। संत समागम करिये भाई।" और
ऐसा साधन नहीं है।तो इसका विवेचन क्या करें,जो सत्संग करणेवाळे हैं,उनका
अनुभव है। कि कितना प्रकाश मिला है सत्संग के द्वारा।कितनी जानकारी हुई
है।कितनी शान्ति मिली है।कितना समाधान हुआ है।
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