22 Oct 2021

श्री हनुमान चालीसा

 


-पुस्तक                 श्री हनुमान चालीसा   

-लेखक                 श्री तुलसीदास जी

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या               32

-मूल्य                       5/-
 
 
 
इस हनुमान चालीसा में सुंदर चित्र हैं। मेरा विश्वास है कि इस हनुमान चालीसा को नियमित रूप से श्रद्धा के साथ पढ़ने से जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं और सफलता मिलने लगती है।

सुंदरकांड

 


-पुस्तक                 सुंदरकांड   

-लेखक                 श्री तुलसीदास जी

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या               96

-मूल्य                       5/-
 
 
 
सुंदरकांड, जिसे रामायण का सबसे सुंदर (सुंदर) हिस्सा माना जाता है, भगवान हनुमान की लंका यात्रा का वर्णन करता है। यह पुस्तक उनकी प्राचीन जीवन शैली को स्पष्ट करती है, जिसके अनुसरण से व्यक्ति के जीवन में कर्म और आध्यात्मिक ज्ञान और भक्ति (भक्ति) आती है। यह भी माना जाता है कि जब कोई सुंदरकांड पढ़ता है, तो भगवान हनुमान स्वयं अपनी उपस्थिति से पाठक पर कृपा करते हैं। सुंदरकांड, श्री हनुमान चालीसा, और संकटमोचन हनुमानाष्टक के संपूर्ण पाठ और व्याख्या भी शामिल है।

एक संत की अमूल्य शिक्षा

 

-पुस्तक                 एक संत की अमूल्य शिक्षा  

-लेखक                 श्री राजेंद्र कुमार धवन जी

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या               88

-मूल्य                      10/-
 
 
 
यह किताब आपकी ज़िन्दगी के लिए बहुत ही उत्तम सबित होगी आपकी जिदगी में किसी भी तरह की परेशानी में यह किताब आपकी मदद करेगी. यह किताब सभी
हिन्दू भाईओ और बहनों को अपनी संस्कृति से जोड़ने के लिए एक रास्ता दिखाएगी . इस किताब में हम क्या है, हमारे कर्तव्य क्या है, इश्वर महिमा, इश्वर में विश्वास, शिव तत्व , शक्ति का रहस्य, भगवत प्राप्ति के उपाय और इसके इलावा कई गुप्त सूत्रों का समावेश है . मुझे सम्पुरण यकीन है की इस किताब के अद्ययन से आपको ज़िन्दगी में एक नई दिशा मिलेगी . 

क्या आप ईश्वर को मानते हो

  

-पुस्तक                 क्या आप ईश्वर को मानते हो

-लेखक                 श्री राजेंद्र कुमार धवन जी

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या              40

-मूल्य                      5/-

 

 

 

 वेद के अनुसार व्यक्ति के भीतर पुरुष ईश्वर ही है। परमेश्वर एक ही है। वैदिक और पाश्चात्य मतों में परमेश्वर की अवधारणा में यह गहरा अन्तर है कि वेद के अनुसार ईश्वर भीतर और परे दोनों है जबकि पाश्चात्य धर्मों के अनुसार ईश्वर केवल परे है। ईश्वर परब्रह्म का सगुण रूप है।

21 Oct 2021

सुख पूर्वक जीने की कला

 


-पुस्तक                 सुख पूर्वक जीने की कला

-लेखक                 स्वामी श्री रामसुखदास जी

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या              48

-मूल्य                      7/-
 
 
 
वर्तमान में लोग भिन्न-भिन्न कारणों से बहुत दुखी हैं। इसलिये जब उन्हें सूचना मिलती है कि शहर में कोई ऐसा साधु, ज्योतिषी अथवा तांत्रिक आया है, जो दूसरों का दुःख दूर कर सकता है तो वे वहीँ चल पड़ते हैं। परन्तु आजकल सच्चे साधु-संत, ज्योतिषी या तांत्रिक प्राय: मिलते नहीं। जो मिलते हैं, वे केवल पैसा कमानेवाले, अपना स्वार्थ सिद्ध करनेवाले ही होते हैं। किसी-किसी की प्रारब्धवश झूठी प्रसिधी भी हो जाती है। किसी बनावटी साधु के पास सौ आदमी अपनी-अपनी कामना लेकर जायं तो उनमें से पच्चीस- तीस आदमियों की कामना तो उनके प्रारब्धके कारण यों ही पूर्ण हो जायेगी। परन्तु वे प्रचार कर देंते कि आमुक साधु की कृपा से, आशीर्वाद से ही हमारी कामना पूर्ण हुई। इस प्रकार बनावटी साधु का भी प्रचार हो जाता है।  

परन्तु एक शहर में कोई सच्चे संत आये। वे किसी से कुछ नहीं मांगे। भिक्षा से जीवन-निर्वाह करते हैं। किसी से भी किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं जोड़ते। किसी को चेला-चेली भी नहीं बनाते। जो उनके पास आता है, उसी का दुःख दूर करने की चेष्टा करते हैं। शहर में उनकी चर्चा फ़ैली तो लोगों की भीड़ उमड़ने लगी। अनेक लोग उन संत के पास इकट्ठे हो गए। कुछ लोग अपना-अपना दुःख सुनाने लगे। संत प्रत्येक श्रोता की बात सुनकर उस का समाधान करने लगे। 

पंचामृत

 


-पुस्तक                 पंचामृत

-लेखक                 स्वामी श्री रामसुखदास जी

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या              32

-मूल्य                      5/-
 
 
पंचामृत हिंदू के साथ-साथ जैन पूजा और पूजा और अभिषेक में उपयोग किए जाने वाले पांच खाद्य पदार्थों का मिश्रण है जो आमतौर पर शहद, गुड़, गाय का दूध, दही और घी होते हैं। पूजा और अभिषेक में पंचामृत का प्रयोग करने के बाद इसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। ठीक बेसे ही शांत आकार वाले चतुर्भुज भगवान विष्णु जी के दर्शन के साथ सन्त शिरोमणि रामसुखदासजी की पंचामृत वाणी के भी दर्शन अति शोभायमान हैं। धन्यवाद।
 

सहज गीता

 

 
 
 
-पुस्तक                 सहज गीता

-लेखक                 स्वामी श्री रामसुखदास जी

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या              256

-मूल्य                      20/-
 
 
 
स्वामी श्री रामसुखदास जी महाराज ने गीतोक्त जीवन की प्रयोगशाला से दीर्घकालीन अनुसंधान द्वारा अनन्त रत्नों का प्रकाश इस टीका में उतार कर लोक-कल्याणार्थ प्रस्तुत किया है, जिससे आत्मकल्याणकामी साधक साधना के चरमोत्कर्ष को आसानी से प्राप्त कर आत्मलाभ कर सकें। इस टीका में स्वामी जी की व्याख्या विद्वत्ता-प्रदर्शन की न होकर सहज करुणा से साधकों की कल्याणकामी है। विविध आकार-प्रकार, भाषा, आकर्षक साज-सज्जा में उपलब्ध यह टीका सद्गुरू की तरह सच्ची मार्गदर्शिका है।

है नाथ! मैं आपको भूलुं नहीं

 


-पुस्तक                 है नाथ! मैं आपको भूलुं नहीं

-लेखक                 श्री राजेंद्र कुमार धवन जी

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या              80

-मूल्य                     10/-
 
 
 
हे नाथ मैं आपको भूलु नहीं: सब भाई-बहन सावधान होकर भगवान के चिंतन में लग जाए। हरदम भगवान से कहते हैं, 'हे नाथ मैं आपलो भूलु नहीं', भगवान की स्मृति संपूर्ण विपट्टियों का नास करने वाली है। ये अंधेरे में लालटैन की तरह प्रकाश करने वाली है, सहारा देने वाली है। इस्के शिवाय संसार में कोई सहारा नहीं। भगवान के स्मरण मातृ से मनुश्य संसार बंधन से छुट जाता है 

मानस-मुक्ता

 


 -पुस्तक                 मानस-मुक्ता

-लेखक                 श्री राजेंद्र कुमार धवन जी

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या              80

-मूल्य                     10/-
 
 
 
 कथा को आगे बढ़ाते हुए मानस मार्तंड ने संत की व्याख्या की। कहा कि काम, क्रोध, लोभ और मोह पर विजय प्राप्त करने वाला ही सही मायने में संत है। सुख और आनंद की प्राप्ति भगवत भजन से ही मिलेगी। काशी से आई मानस मुक्ता साध्वी लक्ष्मीमणि ने कहा कि कैकेयी सारे जगत में निंदनीय या फिर वंदनीय हैं, इस बारे में अब भी संशय है। लेकिन चित्रकूट की सभा में ऋषि वशिष्ठ और भरत की मौजूदगी में भगवान राम ने अंबा कैकेयी की सराहना की थी। कहा था कि मां कैकेयी ने उन्हें वनवास भेजते समय राष्ट्र मंगल और राम के जरिए जगत का कल्याण की बात सोचा होगा। कहा कि भरत ने कैकेयी के प्रति जो वचन कहे वह राम के प्रति अगाध प्रेम को प्रदर्शित करता है। जब कोई व्यक्ति किसी के प्रेम में भाव विह्वल हो जाता है तो उसके वाणी पर कोई नियंत्रण नहीं रह जाता।

20 Oct 2021

अनुभव वाणी

 


-पुस्तक                 अनुभव वाणी

-लेखक                 श्री स्वामी रामसुखदास जी

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या              160

-मूल्य                      20/-
 
 
 
 
सत्संगति करने से आदमी की विलक्षणता आती है।यह हमारे कुछ देखणे में आई है।शास्त्रों के अच्छे नामी पण्डित हो,उनमें बातें वे नहीं आती है जो सत्संग करणेवाळे साधकों में आती है।पढ़े-लिखे नहीं है,सत्संग करते हैं।वे जो मार्मिक बातें जितनी कहते हैं इतनी शास्त्र पढ़ा हुआ नहीं कह सकता,केवल पुस्तकें पढ़ा हुआ। शास्त्रों की बात पूछो,ठीक बता देगा।ठीक बता देगा,परन्तु कैसे कल्याण हो,जैसे, जीवन कैसे सुधरे, अपणा व्यवहार कैसे सुधरे,भाव कैसे सुधरे,इण बातों को सत्संगत करणेवाळा पुरुष विशेष समझता है।तो सत्संगति सबसे श्रेष्ठ साधन है।सत्संगी के लिये तो ऐसा कहा है कि "और उपाय नहीं तिरणे का सुन्दर काढ़ी है राम दुहाई। संत समागम करिये भाई।" और ऐसा साधन नहीं है।तो इसका विवेचन क्या करें,जो सत्संग करणेवाळे हैं,उनका अनुभव है। कि कितना प्रकाश मिला है सत्संग के द्वारा।कितनी जानकारी हुई है।कितनी शान्ति मिली है।कितना समाधान हुआ है।