24 Oct 2021

चेतावनी और सामयिक चेतावनी


 


-पुस्तक                 चेतावनी और सामयिक चेतावनी 

-लेखक                 श्री जयदयाल गोयंदका जी

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या               62

-मूल्य                       3/-
 
 
 
|| सामयिक - चेतावनी ||

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है - ' तू सुखरहित और क्षणभंगुर इस मनुष्य शरीर को प्राप्त होकर निरंतर मेरा ही भजन कर |' हम जिधर दृष्टि दौडाते हैं , उधर हमें दुःख - ही - दुःख नजर आता है | बचपन से लेकर मृत्युपर्यन्त दुःख का ही एकछत्र साम्राज्य है | गीता में जन्म , मृत्यु , जरा और रोग [ व्याधि ] आदि में दुःख और दोषों का बार - बार विचार करने हेतु कहा गया है | माता के गर्भ में आते ही इस जीव को दुःख चारों ओर से आ घेरते हैं | माता के उदर में जब तक यह जीव रहता है , तब तक घोर कष्ट का अनुभव करता है | वह चारों ओर मांस - मज्जा , रुधिर -कफ और मल- मूत्र आदि दूषित और दुर्गन्धयुक्त पदार्थों से घिरा रहता है | ऊपर टांगें और नीचे शिर किये सिकुड़ा हुआ पड़ा रहता है | माता यदि भूल से कोई क्षारयुक्त अथवा दाहक पदार्थ खा लेती है तो उससे गर्भस्त शिशु की त्वचा जलने लगती है | वह चुप - चाप इन सारे कष्टों को सहता रहता है | गर्भ से बाहर निकलते समय भी उसे घोर यंत्रणा होती है , वह चेतनाशून्य हो जाता है | इसी प्रकार मृत्यु के समय भी बड़े कष्ट से प्राण त्यागता है |
 

भगवान की दया


 


-पुस्तक                 भगवान की दया 

-लेखक                 श्री जयदयाल गोयंदका जी

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या               64

-मूल्य                       4/-
 
 
 

भगवान की दया तत्व समझ जाने के बाद फिर कभी अशान्ति हो ही नहीं सकती सदा आनन्द में रहेगा | दया का तत्व जानने पर तो पाप हो ही नही सकते और भजन छूट ही नही सकता |जो दया का महत्व समझ जाय उसे कहने की आवश्यकता नहीं  है | जब तक भजन करना पड़ता है तबतक ही भजन का तत्व नही समझे | अज्ञानी कर्म करता है और ज्ञानी से होता है | भजन में प्रीति हो जायगी तो भजन होने लगेगा, करना नही पड़ेगा |

यह विकास है या विनास जरा सोचिए


 


-पुस्तक                 यह विकास है या विनास जरा सोचिए

-लेखक                 श्री स्वामी रामसुख जी

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या               64

-मूल्य                       5/-
 
 
 सबसे बड़ी चिंता ये है कि हमने इतना प्रदूषण पैदा कर दिया है कि हमारी समुद्र की सतह पर जो गर्मी रहा करती थी, वो बढ़ रही है और गर्मी बढ़ने के कारण जो हवाएं ठीक से चलनी चाहिए, उसमें विघ्न पड़ गया है। उस विघ्न का भी नाम उन्होंने अलनीनो इफेक्ट कह रखा है। उसके कारण से जो बिचारे बादल आ रहे थे, वे बीच में रुक गए और बाकी के लौट गए बेचारे। अगर बादलों को हवा नहीं ले के आएगी, तो बादलों के पांव तो कोई होते नहीं हैं। अपने आप तो वो चल कर आ नहीं सकते हैं। उनको हवाएं ही लाएंगी। और वो हवाएं अगर गड़बड़ हो गई हैं, तो क्या होगा

23 Oct 2021

संसार का असर के छुटे


 


-पुस्तक                 संसार का असर के छुटे

-लेखक                 श्री स्वामी रामसुख जी

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या               64

-मूल्य                       5/-
 
 
 

प्रस्तुत पुस्तक में मनुष्य अपने जीवन पर संसार का असर कैसे समाप्त करें के विषय में बताया गया है। 

आनंद की लहरें


 


-पुस्तक                 आनंद की लहरें

-लेखक                 श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या               32

-मूल्य                       3/-
 
 
 
इस संसार में सभी सराय के मुसाफिर हैं, थोड़ी देरके लिए एक जगह टिके हैं, सभी को समय पर यहाँ से चल देना है, घर-मकान किसीका नहीं है, फिर इनके लिए कि सी से लड़ना क्यों चाहिए ?
जगत में जड़ कुछ भी नहीं है, हमारी जड़वृत्ति ही हमें जड़के  दर्शन करा रही है, असल में तो जहाँ  देखो, वहीं वह परम सुखस्वरूप नित्य चेतन भरा हुआ है! तुम-हम कोई उससे भिन्न  नहीं! फिर दुःख क्यों पा रहे हो? सर्वदा-सर्वदा निजानन्दमें निमग्न रहो!
 

कल्याणकारी आचरण


 


 

-पुस्तक                 कल्याणकारी आचरण

-लेखक                 श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या               32

-मूल्य                       3/-
 
 
 
भगवान् एक ही हैं। वे ही निर्गुण -निराकार, सगुण-निराकार और सगुण -साकार हैं। लीलाभेदसे उन एकके ही अनेक नाम, रूप तथा उपासनाके भेद हैं। जगतके सारे मनुष्य उन एक ही भगवान् की विभिन्न प्रकारसे उपासना करते हैं, ऐसा समझे

धर्म क्या है भगवान क्या है


 


-पुस्तक                 धर्म क्या है भगवान क्या है

-लेखक                 श्री जयदयाल गोयंदका जी

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या               62

-मूल्य                       5/-
 
 
 
परमेश्वर वह सर्वोच्च परालौकिक शक्ति है जिसे इस संसार का सृष्टा और शासक माना जाता है। हिन्दी में ईश्वर को भगवान, परमात्मा या परमेश्वर भी कहते हैं। अधिकतर धर्मों में परमेश्वर की परिकल्पना ब्रह्माण्ड की संरचना करने वाले से जुड़ी हुई है। 
 

दिव्य संदेश


 


-पुस्तक                 दिव्य संदेश

-लेखक                 श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी 

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या               62

-मूल्य                       5/-
 
 
धर्म के नाम पर आज ढोंग और दम्भ का पार नहीं रहा है। परमात्मा को, उसके नाम को और उसके दिव्य धर्म को भुलाकर जगत् आज ऊपर की बातों में ही लड़ रहा है। इसीलिए न तो आज धर्म की उन्नति होती है और न कोई सुख का साधन ही दीखता है। लोग समझते हैं कि ईश्वर केवल उनके निर्देश किये हुए स्थान और नियमों में ही आबद्ध है, अन्य सब जगह तो उसका अभाव ही है।          

परलोक और पुनर्जन्म


 


-पुस्तक                 परलोक और पुनर्जन्म

-लेखक                 श्री जयदयाल गोयंदका जी

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या               62

-मूल्य                       5/-
 
 
 
मनुष्यमात्र को पतनकारी आसुरी सम्पदा के दोषों से सदा दूर रहने तथा परम विशुद्ध उज्ज्वल चरित्र होकर सर्वदा सत्कर्म करते रहने की शुभ प्रेरणा के साथ इस में परलोक तथा पुनर्जन्म के रहस्यों और सिद्धान्तों पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। आत्मकल्याणकामी पुरुषों तथा साधकमात्र के लिये इसका अध्ययन-अनुशीलन अति उपयोगी है।

विवाह में दहेज


 


-पुस्तक                 विवाह में दहेज

-लेखक                 श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या               32

-मूल्य                       3/-
 
 
 

दहेज का अर्थ है जो सम्पत्ति, विवाह के समय वधू के परिवार की तरफ़ से वर को दी जाती है। दहेज को उर्दू में जहेज़ कहते हैं। यूरोप, भारत, अफ्रीका और दुनिया के अन्य भागों में दहेज प्रथा का लंबा इतिहास है। भारत में इसे दहेज, हुँडा या वर-दक्षिणा के नाम से भी जाना जाता है तथा वधू के परिवार द्वारा नक़द या वस्तुओं के रूप में यह वर के परिवार को वधू के साथ दिया जाता है। आज के आधुनिक समय में भी दहेज़ प्रथा नाम की बुराई हर जगह फैली हुई है। पिछड़े भारतीय समाज में दहेज़ प्रथा अभी भी विकराल रूप में है