-पुस्तक सर्वोपरि साधना - शरणगति
-लेखक श्री स्वामी रामसुखदास जी
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 17
-पुस्तक सर्वोपरि साधना - शरणगति
-लेखक श्री स्वामी रामसुखदास जी
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 17
-पुस्तक मेरे नाथ! मेरे प्रभु
-लेखक श्री राजेंद्र कुमार धवन जी
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 32
-पुस्तक प्रश्नोत्तरी
-लेखक श्रीस्वामी शंकराचार्य जी
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 32
-पुस्तक श्री हनुमान चालीसा
-लेखक श्री तुलसीदास
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 33
-पुस्तक श्री दुर्गाचालीसा
-लेखक श्री..
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 32
मां दुर्गाजी के नौ रूप हैं। मां दुर्गा इस सृष्टि की आद्य शक्ति हैं यानी आदि शक्ति हैं। पितामह ब्रह्माजी, भगवान विष्णु और भगवान शंकरजी उन्हीं की शक्ति से सृष्टि की उत्पत्ति, पालन-पोषण और संहार करते हैं। अन्य देवता भी उन्हीं की शक्ति से शक्तिमान होकर सारे कार्य करते हैं।
-पुस्तक भीष्मस्तवराज
-लेखक श्री तुलसीदास
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 62
-पुस्तक श्री हनुमान चालीसा
-लेखक श्री तुलसीदास
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 32
-पुस्तक भगवान श्री कृष्ण की कृपा और प्रेम की प्राप्ति
-लेखक श्री...
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 32
"ॐ देविकानन्दनाय विधमहे वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्ण:प्रचोदयात".... श्रीकृष्ण के इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति के जीवन और मन से सभी दुख दूर हो जाते हैं. "हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे राम, हरे राम, राम राम, हरे हरे".... यह 16 शब्दों का वैष्णव मंत्र है जो भगवान कृष्ण का सबसे प्रसिद्ध मंत्र है.
-पुस्तक वैराग्य-संदीपनी और बरवे रामायण
-लेखक श्री...
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 64
-पुस्तक पांडवगीता और हंसगीता
-लेखक श्री...
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 64
आचार्य विनोबाजी के गीता प्रवचन तथा गीताई नामक समश्लोकी अनुवाद अत्यंत लोकप्रिय हुए हैं। संसार की सभी प्रगल्भ भाषाओं में गीता के अनुवाद हो चुके हैं। गीता की इस योग्यता तथा मान्यता के कारण संस्कृत भाषा में रामगीता, शिवगीता, गुरुगीता हंसगीता, पांडवगीता, आदि 17 प्राचीन प्रसिद्ध गीता ग्रंथ प्रचलित हुए तथा आधुनिक काल में रमणगीता इत्यादि दो सौ से अधिक "गीता' संज्ञक ग्रंथ निर्माण हुए हैं। श्रीमद्भगवद्गीता के प्रभाव से "दूतकाव्य" के समान गीता एक पृथगात्म वाङ्मयप्रकार ही संस्कृत वाङ्मय के क्षेत्र में हो गया है। गीता - सन 1960 में के. वेंकटराव के सम्पादकत्व में इस मासिक पत्रिका का प्रकाशन उडुपी से प्रारंभ हुआ। यह संस्कृत पत्रिका कत्रड लिपी में प्रकाशित होती थी। इसका वार्षिक मूल्य तीन रुपये था। गीतांजलि - रवींद्रनाथ टैगोर की प्रस्तुत सुप्रसिद्ध काव्य रचना एवं कथा उपन्यास आदि बंगाली साहित्य का अनुवाद पद्यवाणी, मंजूषा आदि संस्कृत पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ।