20 Oct 2021

सर्वोपरि साधना - शरणगति

 


-पुस्तक                 सर्वोपरि साधना - शरणगति

-लेखक                 श्री स्वामी रामसुखदास जी

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या              17

-मूल्य                      5/-
 
 
 
 
साधना के माध्यम से जब मानव प्रभु के सर्वोपरि धाम को प्राप्त करता है तो वह स्वयं को जन्म-मरण के चक्र से सदा के लिए मुक्त कर लेता है।

मेरे नाथ! मेरे प्रभु

 


-पुस्तक                 मेरे नाथ! मेरे प्रभु

-लेखक                 श्री राजेंद्र कुमार धवन जी

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या              32

-मूल्य                     10/-
 
 
 
नितांत वैराग्य स्वरूप, परमश्रद्धेय श्री स्वामीजी महाराज का यह विशेष निर्देश था कि कोई उनकी जीवनी न लिखे। यह संक्षिप्त परिचय "शाखा-चंद्र-न्याय" (एक पेड़ की शाखा के माध्यम से चंद्रमा की ओर इशारा करते हुए) के माध्यम से लिखा गया है, ताकि अधिक से अधिक लोग इस महान संत से परिचित होकर उनकी शिक्षाओं से लाभान्वित हो सकें। 

प्रश्नोत्तरी

 


-पुस्तक                 प्रश्नोत्तरी

-लेखक                 श्रीस्वामी शंकराचार्य जी

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या              32

-मूल्य                      3/-
 
 
 
श्रीस्वामीशंकराचार्य जी की  प्रश्नोत्तर-मणिमाला बहुत ही उपादेय पुस्तिका है  | इसके प्रत्येक प्रश्न और उत्तर पर  मनन पूर्वक विचार करना आवश्यक है | संसार में स्त्री, धन और पुत्रादि पदार्थों के कारण ही मनुष्य विशेष रूप से बन्धन में रहता है, इन पदार्थों से वैराग्य होने में ही कल्याण है, यही समझकर उन्होंने स्त्री, धन और पुत्रादि की निन्दा की है | स्त्री के लिए  विशेष जोर देने का कारण भी स्पष्ट है | धन, पुत्रादि छोडने वाले भी प्राय: स्त्रियों में आसक्त देखे जाते हैं, वास्तव में यह दोष स्त्रियों का नहीं है, यह दोष तो पुरुषों के बिगड़े हुए मन का है; परन्तु मन बड़ा चंचल है, इसलिए संन्यासियों को स्त्रियों से हर तरह से अलग ही रहना चाहिए | जान पड़ता है कि यह पुस्तिका खासकर संन्यासियों के लिए ही लिखी गयी थी | इसमें बहुत सी बातें ऐसी हैं जो सभी के काम की हैं | अत: उनसे हम लोगों को पूरा लाभ उठाना चाहिए  | स्त्री, पुत्र, धन आदि संसार के सभी पदार्थों से यथासाध्य ममता का त्याग करना आवश्यक है |

श्री हनुमानचालीसा

 

-पुस्तक                 श्री हनुमान चालीसा

-लेखक                 श्री तुलसीदास

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या              33

-मूल्य                     10/-
 
 
 
 
हनुमान चालीसा हनुमान की स्तुति में एक हिंदू भक्ति भजन है। यह तुलसीदास द्वारा अवधी भाषा में लिखा गया था, और रामचरितमानस के अलावा उनका सबसे प्रसिद्ध पाठ है। अवधी के अलावा, हनुमान चालीसा संस्कृत, तमिल, तेलुगु और गुजराती सहित विभिन्न भाषाओं में भी उपलब्ध है। 

श्री दुर्गाचालीसा

 

-पुस्तक                 श्री दुर्गाचालीसा

-लेखक                 श्री..

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या             32

-मूल्य                     5/-
 
 
 

मां दुर्गाजी के नौ रूप हैं। मां दुर्गा इस सृष्टि की आद्य शक्ति हैं यानी आदि शक्ति हैं। पितामह ब्रह्माजी, भगवान विष्णु और भगवान शंकरजी उन्हीं की शक्ति से सृष्टि की उत्पत्ति, पालन-पोषण और संहार करते हैं। अन्य देवता भी उन्हीं की शक्ति से शक्तिमान होकर सारे कार्य करते हैं।

भीष्मस्तवराज

  

-पुस्तक                 भीष्मस्तवराज

-लेखक                 श्री तुलसीदास

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या             62

-मूल्य                     5/-
 
 
 
 
भीष्मपितामह द्वारा भगवान कृष्ण की स्तुति का वर्णन किया गया है

हनुमान चालीसा

-पुस्तक                 श्री हनुमान चालीसा

-लेखक                 श्री तुलसीदास

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या             32

-मूल्य                     4/-
 
 
 
 
हनुमान चालीसा हनुमान की स्तुति में एक हिंदू भक्ति भजन है। यह तुलसीदास द्वारा अवधी भाषा में लिखा गया था, और रामचरितमानस के अलावा उनका सबसे प्रसिद्ध पाठ है। अवधी के अलावा, हनुमान चालीसा संस्कृत, तमिल, तेलुगु और गुजराती सहित विभिन्न भाषाओं में भी उपलब्ध है। 

भगवान श्री कृष्ण की कृपा और प्रेम की प्राप्ति

 


-पुस्तक                 भगवान श्री कृष्ण की कृपा और प्रेम की प्राप्ति

-लेखक                 श्री...

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या             32

-मूल्य                     3/-
 
 
 
 
गोपियों ने कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को प्रकट करते हुए कहा है कि- श्री कृष्ण के प्रति स्नेह-बंधन गुड़ से चिपटी हुई चींटियों के समान है। श्रीकृष्ण उनके लिए हारिल की लकड़ी के समान हैं। गोपियाँ मन-कर्म, वचन सभी से कृष्ण के प्रति समर्पित हैं। सोते-जागते, दिन-रात उन्हीं का स्मरण करती हैं।

"ॐ देविकानन्दनाय विधमहे वासुदेवाय धीमहि तन्नो कृष्ण:प्रचोदयात".... श्रीकृष्ण के इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति के जीवन और मन से सभी दुख दूर हो जाते हैं. "हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे राम, हरे राम, राम राम, हरे हरे".... यह 16 शब्दों का वैष्णव मंत्र है जो भगवान कृष्ण का सबसे प्रसिद्ध मंत्र है.

वैराग्य -संदीपनी और बरवे रामायण

 


-पुस्तक                 वैराग्य-संदीपनी और बरवे रामायण

-लेखक                 श्री...

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या             64

-मूल्य                     4/-
 
 
 
 
हिन्दी साहित्य के आकाश के परम नक्षत्र गोस्वामी तुलसीदासजी भक्तिकाल की सगुण धारा की रामभक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि है। तुलसीदास एक साथ कवि,भक्त तथा समाज सुधारक इन तीनो रूपों में मान्य है। इनका जन्म सं.१५८९को बांदा जिले के राजापुर नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी था। इनका विवाह दीनबंधु पाठक की पुत्री रत्नावली से हुआ था। अपनी पत्नी रत्नावली से अत्याधिक प्रेम के कारण तुलसी को रत्नावली की फटकार ” लाज न आई आपको दौरे आएहु नाथ” सुननी पड़ी जिससे इनका जीवन ही परिवर्तित हो गया । पत्नी के उपदेश से तुलसी के मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया। इनके गुरु बाबा नरहरिदास थे,जिन्होंने इन्हे दीक्षा दी। इनका अधिकाँश जीवन चित्रकुट,काशी तथा अयोध्या में बीता । इनका देहांत सं.१६८० में काशी के असी घाट पर हुआ –

 

पांडवगीता और हंसगीता

 

-पुस्तक                 पांडवगीता और हंसगीता

-लेखक                 श्री...

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या             64

-मूल्य                     5/-
 
 
 
 
 
 

 आचार्य विनोबाजी के गीता प्रवचन तथा गीताई नामक समश्लोकी अनुवाद अत्यंत लोकप्रिय हुए हैं। संसार की सभी प्रगल्भ भाषाओं में गीता के अनुवाद हो चुके हैं। गीता की इस योग्यता तथा मान्यता के कारण संस्कृत भाषा में रामगीता, शिवगीता, गुरुगीता हंसगीता, पांडवगीता, आदि 17 प्राचीन प्रसिद्ध गीता ग्रंथ प्रचलित हुए तथा आधुनिक काल में रमणगीता इत्यादि दो सौ से अधिक "गीता' संज्ञक ग्रंथ निर्माण हुए हैं। श्रीमद्भगवद्गीता के प्रभाव से "दूतकाव्य" के समान गीता एक पृथगात्म वाङ्मयप्रकार ही संस्कृत वाङ्मय के क्षेत्र में हो गया है। गीता - सन 1960 में के. वेंकटराव के सम्पादकत्व में इस मासिक पत्रिका का प्रकाशन उडुपी से प्रारंभ हुआ। यह संस्कृत पत्रिका कत्रड लिपी में प्रकाशित होती थी। इसका वार्षिक मूल्य तीन रुपये था। गीतांजलि - रवींद्रनाथ टैगोर की प्रस्तुत सुप्रसिद्ध काव्य रचना एवं कथा उपन्यास आदि बंगाली साहित्य का अनुवाद पद्यवाणी, मंजूषा आदि संस्कृत पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ।