-पुस्तक वैराग्य-संदीपनी और बरवे रामायण
-लेखक श्री...
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 64
-मूल्य 4/-
हिन्दी साहित्य के आकाश के परम नक्षत्र गोस्वामी तुलसीदासजी भक्तिकाल
की सगुण धारा की रामभक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि है। तुलसीदास एक
साथ कवि,भक्त तथा समाज सुधारक इन तीनो रूपों में मान्य है। इनका जन्म
सं.१५८९को बांदा जिले के राजापुर नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का
नाम आत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी था। इनका विवाह दीनबंधु पाठक
की पुत्री रत्नावली से हुआ था। अपनी पत्नी रत्नावली से अत्याधिक प्रेम के
कारण तुलसी को रत्नावली की फटकार ” लाज न आई आपको दौरे आएहु नाथ” सुननी पड़ी
जिससे इनका जीवन ही परिवर्तित हो गया । पत्नी के उपदेश से तुलसी के मन में
वैराग्य उत्पन्न हो गया। इनके गुरु बाबा नरहरिदास थे,जिन्होंने इन्हे दीक्षा
दी। इनका अधिकाँश जीवन चित्रकुट,काशी तथा अयोध्या में बीता । इनका देहांत
सं.१६८० में काशी के असी घाट पर हुआ –