-पुस्तक जय जय प्रियतम
-लेखक श्री राधा बाबा
-प्रकाशक गीता गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 240
-मूल्य 100/-
श्रीभाईजी की पारमार्थिक स्तिथि को जितना श्रीराधाबाबा ने अनुभव किया उसका
कतिपय अंश योगमाया की लीला महाशक्ति की कृपा से जगत के कल्याण हेतु
श्रीराधाबाबा की लेखनी एवं वाणी से समय-समय पर प्रस्फुटित होती रही| यह
सामग्री यत्र-तत्र बिखरी हुई है| इसे एक जगह प्रकाशित में करने का उद्देश्य
यही है की बाबाको श्रीभाईजी की महिमा का जो ज्ञान था वह सर्वसाधारण को
सुलभ हो जाये| श्री राधाबाबा की हस्तलिखित सामग्री यथास्थान देने का प्रयास
किया गया है|सभी सामग्री उनके हस्ताक्षरों इसीलिए नहीं दी जा सकी कि वे
पृष्ठ अत्यंत जीर्ण अवस्था में है| आशा है की श्रीराधाबाबा के ये वचनामृत
अनंतकाल तक भक्तजनों के लिये प्रेरणाप्रद रहेंगें और भूले-भटकों को निरंतर
सत्पथ प्रदर्शित करते रहेंगे|
No comments:
Post a Comment