-पुस्तक श्रीललितासहस्त्रनामस्तोत्रम्
-लेखक स्वामी रामसुखदास जी
-प्रकाशक गीताप्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 80
-मूल्य 12/-
ललितासहस्रनाम, ब्रह्माण्डपुराण का अंश है। यह देवी दुर्गा की स्तुति का पवित्र ग्रन्थ है। ललिता, पार्वती की एक रूप हैं।
ललिता सहस्त्रनाम तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है -
- पूर्व भाग - जिसमें सहस्रनाम के उत्पत्ति के बारे में बताया है।
- स्तोत्र - इसमें देवी माँ के 1000 नाम आते हैं।
- उत्तर भाग - इसमें फलश्रुति या सहस्रनाम पठन के लाभ बताये गए है।
ललिता आत्मा की उल्लासपूर्ण, क्रियाशील और प्रकाशमय अभिव्यक्ति है। मुक्त चेतना जिसमे कोई राग द्वेष नहीं, जो आत्मस्थित है वो स्वतः ही उल्लासपूर्ण, उत्साह से भरी, खिली हुई होती है। ये ललितकाश है।`
ललिता सहस्रनाम में हम देवी माँ के एक हजार नाम जपते हैं। नाम का एक अपना महत्त्व होता है। यदि हम चन्दन के पेड़ को याद करते हैं तो हम उसके इत्र की स्मृति को साथ ले जाते हैं। सहस्रनाम में देवी के प्रत्येक नाम से देवी का कोई गुण या विशेषता बताई जाती है।
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