-पुस्तक प्रेमयोग
-लेखक श्री वियोगी हरि जी
-प्रकाशक गीताप्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 288
-मूल्य 30/-
प्रेम मानव-भावना का सर्वोत्कृष्ट परिचय है। जगत में परमात्मा के वास्तविक
स्वरुप का परिचय प्रेम ही है। प्रस्तुत पुस्तक श्री वियोगी हरि जी के
द्वारा प्रणीत हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, प्रायः सभी धर्मावलिम्बयों के
प्रेम-सम्बन्धी सूक्तियों के आधार पर एक सरस एवं स्वस्थ आलोचनात्मक
व्याख्या है। मोह और प्रेम, प्रेम का अधिकारी, लौकिक से पारलौकिक प्रेम,
प्रेम में अनन्यता, दास्य, वात्सल्य, सख्य प्रेम आदि विविध विषयों की
सुन्दर व्याख्या के रूप में यह पुस्तक नित्य पठनीय एवं संग्रहणीय है।
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