-पुस्तक श्रीश्री चैतन्य-चरितावली
-लेखक श्रीश्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी जी
-प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 682
-मूल्य 200/-
परम भागवत संत गौलोकवासी *श्री श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी जी* ने गीता प्रेस गोरखपुर के परम श्रदेय *भाई हनुमानप्रसाद पोद्दार* के विशेष अनुरोध पर पतित पवन *गंगा जी* के किनारे वसी श्री हरीबाबा जी की कुटिया में *1988* में लिखी।
*यह अनुपम ग्रन्थ भक्ति की अभिव्यक्ति की पराकाष्ठा का पूरा भाव अपने अंदर समेटे हुए है।भक्ति भाव की व्याख्या के लिए लिखे गए तमाम ग्रन्थो में यह सबसे श्रेष्ठ श्रेणी का है क्योंकि एक ओर तो यह भक्ति के महासागर गौरांग महाप्रभु के भक्तिमय चरित्र की गाथा है,दूसरी ओर इसमें भगवान श्रीकृष्ण को सदैव साक्षात्कार करने वाले महान संत श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी जी की दिव्य लेखनी का समावेश है।
चैतन्य महाप्रभु ने संस्कृत में आठ श्लोकों की रचना की जिन्हें शिक्षाष्टक कहा जाता है। इनमें से एक श्लोक
में वे कहते हैं:- "भगवान श्री कृष्ण के पावन नाम और गुणों का संकीर्तन
सर्वोपरि है, उसकी तुलना में और कोई साधन नहीं ठहर सकता है।"
चेतोदर्पणमार्जनं भव-महादावाग्नि-निर्वापणम् श्रेयःकैरवचन्द्रिकावितरणं
विद्यावधू-जीवनम् ।
*एक महान भक्त के भक्तिभाव को
कोई भक्त ही वेहतर अभिव्यक्त कर सकता है और यह दुर्लभ संयोंग इस अनुपम
ग्रन्थ में बना,इस संयोग से भक्ति की ऐसी धारा प्रस्फुठित हुई जिसे पढ़कर आप
स्वम को भक्ति से ओत-प्रोत पाएंगे। *महाराज श्री इसे 5 भागो में लिखा
है।इसकी लोकप्रियता इतनी बढ़ी कि तमिल,तेलगु,गुजराती,मराठी आदि भाषाओ में भी
अनुवाद हुआ
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