-पुस्तक हित राधिकाचरणदासजी 'ढोंगी बाबा ' की वाणी
-लेखक श्रीहितजसअलिशरण
-प्रकाशक श्रीहित साहित्य प्रकाशन वृन्दावन
-पृष्ठसंख्या 818
-मूल्य 800/-
रसिकवर श्री हित राधिकाशरणदासजी ऐसे ही रसिक हंसो में अन्यतम थे। इनका जन्म मध्य प्रदेश के मुकुंदपुर ग्राम में हुआ था। इनकी बचपन से ही भक्ति में रुचि थी।
भक्ति भाव की कृपा से वृंदावन में श्री हित राधाबल्लभ मंदिर के विलास वंशीय सेवााधिकारी गोस्वामी श्री हित रूपलालजी महाराज से रसोपासना की मंत्र दीक्षा ग्रहण की। तत्पश्चात इन्होन श्री हित जन्मस्थली -बादग्राम, पिपरोली ग्राम, मोरकुटी बरसाना, राधाकुंड, और वृंदावन के अनेक स्थानों पर निवास किया।
तथा बहॉ पर कभी समाज-गान तो कभी एकल-गान किया करते थे ।इसी बीच इनके मुख से अनायास ही वाणी ग्रंथो का रसोद्गलन भी हुआ जिन्की सांख्य 40थी जो आज भी रस भारती संस्थान में उपलव्ध है।
रास गान में मगन रहने लगे और खुद को ढोंगी बाबा कह देते थे।इसलिए इनकी ख्याति ढोंगी बाबा के नाम से हो गई।
आशा
ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है की श्रीहितराधिकाचरणदासजी 'ढोंगी बाबा' की
वाणी का यह दूसरा खंड वृंदावन रस प्रेमी शुद्धिजानोको श्रीराधाकृष्ण की
रासलीला से साक्षात्कर कराते हुए उन्हे रसभक्ति-धारा मैं सरबोर करेगा।
इस वाणी रूपी वाटिका में रस-ग्राही अनन्य भ्रमरो के लिए बहुत कुछ है
आज भी स्वरचित वाणी-वपु से वे हित तत्व के अप्रियतम ज्ञाता और नित्यविहार रस के उदगाता बनकर रसिक समाज को रस-सराबोर कर रहैं हैं और करते रहेगें।
No comments:
Post a Comment