-पुस्तक वासुदेवःसर्वम्
-लेखक स्वामी रामसुखदास जी
-प्रकाशक गीताप्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 62
-मूल्य 6/-
गीतामें भगवान्ने एक बड़ी विलक्षण बात बतायी है–
बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते ।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः ॥
बहुत जन्मोंके अन्तमें अर्थात्
मनुष्यजन्ममें ‘सब कुछ वासुदेव ही है’–ऐसे जो ज्ञानवान मेरे
शरण होता है, वह महात्मा अत्यन्त दुर्लभ है ।’
ज्ञान किसी अभ्याससे पैदा नहीं होता, प्रत्युत
जो वास्तवमें है, उसको वैसा ही यथार्थ जान लेनेका नाम ‘ज्ञान’ है । ‘वासुदेवः सर्वम्’ (सब कुछ
परमात्मा ही है)–यह ज्ञान वास्तवमें है ही ऐसा । यह कोई नया बनाया हुआ ज्ञान नहीं
है, प्रत्युत स्वतःसिद्ध है । अतः भगवान्की वाणीसे हमें इस बातका पता लग गया कि सब कुछ
परमात्मा ही है, यह कितने आनन्दकी बात है ! यह ऊँचा-से-ऊँचा ज्ञान है । इससे बढ़कर
कोई ज्ञान है ही नहीं । कोई भले ही सब शास्त्र पढ़ ले, वेद पढ़ ले, पुराण पढ़
ले, पर अन्तमें यही बात रहेगी कि सब कुछ परमात्मा ही है; क्योंकि वास्तवमें बात है
ही यही !
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