-पुस्तक पद्मपुराण
-लेखक स्वामी हितदास जी महाराज
-प्रकाशक गीताप्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 1008
-मूल्य 300/-
पद्म पुराण प्रमुख रूप से वैष्णव पुराण है। इसके श्रवण करने से जीवन पवित्र हो जाता है। अट्ठारह पुराणों में पद्मपुराण का एक विशिष्ट स्थान है। पद्मपुराण में पचपन हजार श्लोक हैं जो पाँच खण्डों में विभक्त हैं। जिसमें
पहला- सृष्टिखण्ड
दूसरा- भूमिखण्ड
तीसरा- स्वर्गखण्ड
चैथा- पातालखण्ड,
पाँचवा- उत्तरखण्ड
इस पुराण का पद्मपुराण नाम पड़ने का कारण यह है कि यह
सम्पूर्ण जगत स्वर्णमय कमल (पद्म) के रूप में परिणित था।
तच्च पद्मं पुराभूतं पष्थ्वीरूप मुत्तमम्।
यत्पद्मं सा रसादेवी प ष्थ्वी परिचक्ष्यते।।
अर्थात् भगवान विष्णु की नाभि से जब कमल उत्पन्न हुआ तब वह पष्थ्वी की तरह
था। उस कमल (पद्म) को ही रसा या पष्थ्वी देवी कहा जाता है। इस पष्त्वी में
अभिव्याप्त आग्नेय प्राण ही ब्रह्मा हैं जो चर्तुमुख के रूप में अर्थात्
चारों ओर फैला हुआ सष्ष्टि की रचना करते हैं और वह कमल जिनकी नाभि से निकला
है, वे विष्णु भगवान सूर्य के समान पष्थ्वी का पालन-पोषण करते हैं। इस पुराण में भगवान् विष्णु की विस्तृत महिमा के साथ भगवान् श्रीराम तथा
श्रीकृष्ण के चरित्र, विभिन्न तीर्थों का माहात्म्य शालग्राम का स्वरूप,
तुलसी-महिमा तथा विभिन्न व्रतों का सुन्दर वर्णन है।
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