-पुस्तक भगवत्प्राप्ति में भाव की प्रधानता
-लेखक श्री जयदयाल गोयन्दका जी
-प्रकाशक गीताप्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 160
-मूल्य 12/-
यदि नाम-जप भाव से किया जाय तो परमात्मा की प्राप्ति बहुत जल्दी हो सकती है। ... परमात्मा के स्वरूप का ध्यान भी यदि भावयुक्त हो कर किया जाय तो उससे भी बहुत जल्दी परमात्माकी प्राप्ति हो सकती है। इसी प्रकार अपने नित्यकर्म यदि भाव-सहित किये जायँ तो उनसे बहुत ज्यादा लाभ हो सकता है।
भक्त की जैसी भावना होती है, ईश्वर की अनुभूति उसी रुपमें होती है। बस हृदय में निष्काम होना चाहिए, तो भगवान भक्त की पुकार को सुन लेते है।
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