22 Oct 2021

नाम जप सर्वोपरि साधन है

 

 

-पुस्तक                 नाम जप सर्वोपरि साधन है

-लेखक                 श्री जयदयाल गोयंदका जी

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या               62

-मूल्य                       4/-
 
 
 
 
"भायँ कुभायँ अनख आलस हूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ॥ 
सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा। करउँ नाइ रघुनाथहि माथा॥" 
 
अच्छे भाव (प्रेम) से, बुरे भाव (बैर) से, क्रोध से या आलस्य से, किसी तरह से भी नाम जपने से दसों दिशाओं में कल्याण होता है। उसी राम नाम का स्मरण करके और रघुनाथ को मस्तक नवाकर मैं राम के गुणों का वर्णन करता हूँ। रावण भी नाम जप करता था, परन्तु कुभाव से, क्योंकि यही उसका स्वभाव था। भगवान के अन्य अनन्य भक्त सात्विक भाव से जप करते थे, जो भाव उनके 
स्वभाव में थे। वस्तुतः हमारा स्वभाव ही हमारे भाव का निर्माता है, अतः जप सही हो इसके लिए सात्विकता जरूरी है। एकाग्रता, शांति प्रियता का प्रभाव साधक की मंत्र शक्ति को कई गुना तक बढ़ा देता है। 

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