-पुस्तक गोपी-प्रेम
-लेखक श्री हनुमान प्रसाद पोदार जी
-प्रकाशक गीताप्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 46
-मूल्य 7/-
महारास की कथा हृदय में छिपे हुए विकारों को दूर कर मन को निर्मल बनाती है। उन्होंने कहा कि आत्मा और परमात्मा के मिलन को ही महारास कहते है। उन्होंने गोपी उद्धव के प्रसंग को सुनाते हुए कहा कि उद्धव जी ज्ञानी बहुत बड़े थे, पर प्रेम से दूर थे। उद्धव को प्रेम की परिभाषा समझाने के लिए ही भगवान श्रीकृष्ण ने उद्धव जी को मथुरा ब्रज की गोपियों के पास भेजा क्योंकि गोपियां साक्षात प्रेम की मूर्ति थी । गोपियों का आध्यात्मिक भाव बताते हुए कहा कि जो कृष्ण को अपने हृदय में बसा लें वहीं गोपी है। कहा कि जब उद्धव जी गोपियों के पास गए तो जब गोपियों द्वारा प्रेम से लपेटे भंवर गीत को सुना तो उद्धव जी के ज्ञान के सामने गोपियों के भगवान श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम रूपी तराजू का पलड़ा भारी पड़ गया। इससे प्रभावित हो कर उद्धव जी गोपियों के प्रेम के गुलाम हो गये।
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