-पुस्तक हम ईश्वर को क्यों माने
-लेखक श्री स्वामी रामसुख जी
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 64
-पुस्तक हम ईश्वर को क्यों माने
-लेखक श्री स्वामी रामसुख जी
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 64
-पुस्तक गीतोक्त संन्यास और निष्काम कर्मयोग का स्वरूप
-लेखक श्री जयदयाल गोयंदका जी
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 62
इस योग में कर्म के द्वारा ईश्वर की प्राप्ति की जाती है। श्रीमद्भगवद्गीता में कर्मयोग को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। गृहस्थ और कर्मठ व्यक्ति के लिए यह योग अधिक उपयुक्त है। हममें से प्रत्येक किसी न किसी कार्य में लगा हुआ है, पर हममें से अधिकांश अपनी शक्तियों का अधिकतर भाग व्यर्थ खो देते हैं; क्योंकि हम कर्म के रहस्य को नहीं जानते। जीवन के लिए, समाज के लिए, देश के लिए, विश्व के लिए कर्म करना आवश्यक है।
-पुस्तक व्यापार सुधार की अवश्यकता और हमारा कर्तव्य
-लेखक श्री जयदयाल गोयंदका जी
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 62
हम व्यावसायिक वातावरण में रहते हैं। यह समाज का एक अनिवार्य अंग है। यह व्यावसायिक क्रियाओं के विस्तृत नेटवर्क के माध्यम से विभिन्न प्रकार की वस्तुएं तथा सेवाएं उपलब्ध कराकर हमारी आश्यकताओं की पूर्ति करता है।
अन्य शब्दों में - व्यवसाय एक ऐसा है जिसमें अर्थोपार्जन के बदले वस्तुओं अथवा सेवाओं का उत्पादन, विक्रय और विनिमय होता है एवं या कार्य नियमित रूप से किया जाता है। "व्यवसाय में वे संपूर्ण मानवीय क्रियाएं आ जाती हैं, जो वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण के लिए की जाती है, जिनका उद्देश्य अपनी सेवाओं द्वारा समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति करके लाभ अर्जन करना होता है।
-पुस्तक भगवान का हेतु रहित सौहार्द, महात्मा किसे कहते है
-लेखक श्री जयदयाल गोयंदका जी
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 64
-पुस्तक किसान और गाय
-लेखक श्री स्वामी रामसुख जी
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 64
-पुस्तक शिखा धारणकी आवस्यकता
-लेखक श्री स्वामी रामसुख जी
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 64
-पुस्तक श्री हनुमान चालीसा
-लेखक श्री तुलसीदास जी
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 32
इस हनुमान चालीसा में सुंदर चित्र हैं। मेरा विश्वास है कि इस हनुमान चालीसा को नियमित रूप से श्रद्धा के साथ पढ़ने से जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं और सफलता मिलने लगती है।
-लेखक श्री .....
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 32
शिवजी भगवान शिव की आराधना के लिए सबसे आसान मंत्र है "ऊं नम: शिवाय"। इस मंत्र के साथ शिवजी की पूजा में शिव चालीसा का भी उपयोग किया जाता है। शिव चालीसा हिन्दू धार्मिक पुस्तकों में भी वर्णित है।
-पुस्तक श्रीविष्णुसहस्त्रनामस्तोत्र
-लेखक श्री ......
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 32
-पुस्तक श्री दुर्गाचलीसा
-लेखक श्री ..
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 32