22 Oct 2021

हम ईश्वर को क्यों माने

 


-पुस्तक                 हम ईश्वर को क्यों माने 

-लेखक                 श्री स्वामी रामसुख जी

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या               64

-मूल्य                       4/-
 
 
 
ईश्वर को मानने वाला मनुष्य ईश्वर के भय से पाप नहीं करता और ईश्वर पर निर्भर हो जाता है, जिससे उसके हृदय में निर्भयता, धीरता, वीरता, गम्भीरता आदि अनेक गुण आ जाते हैं।

गीतोक्त संन्यास और निष्काम कर्मयोग का स्वरूप

  

-पुस्तक                गीतोक्त संन्यास और निष्काम कर्मयोग का स्वरूप 

-लेखक                 श्री जयदयाल गोयंदका जी

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या               62

-मूल्य                       4/-
 
 
 
 

इस योग में कर्म के द्वारा ईश्वर की प्राप्ति की जाती है। श्रीमद्भगवद्गीता में कर्मयोग को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। गृहस्थ और कर्मठ व्यक्ति के लिए यह योग अधिक उपयुक्त है। हममें से प्रत्येक किसी न किसी कार्य में लगा हुआ है, पर हममें से अधिकांश अपनी शक्तियों का अधिकतर भाग व्यर्थ खो देते हैं; क्योंकि हम कर्म के रहस्य को नहीं जानते। जीवन के लिए, समाज के लिए, देश के लिए, विश्व के लिए कर्म करना आवश्यक है।

व्यापार सुधार की अवश्यकता और हमारा कर्तव्य

 

 


-पुस्तक                व्यापार सुधार की अवश्यकता और हमारा कर्तव्य

-लेखक                श्री जयदयाल गोयंदका जी

-प्रकाशक            श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या             62

-मूल्य                     4/-
 
 
 

हम व्यावसायिक वातावरण में रहते हैं। य समाज का एक अनिवार्य अंग है। यह व्यावसायिक क्रियाओं के विस्तृत नेटवर्क के माध्यम से विभिन्न प्रकार की वस्तुएं तथा सेवाएं उपलब्ध कराकर हमारी आश्यकताओं की पूर्ति करता है।

अन्य शब्दों में - व्यवसाय एक ऐसा है जिसमें अर्थोपार्जन के बदले वस्तुओं अथवा सेवाओं का उत्पादन, विक्रय और विनिमय होता है एवं या कार्य नियमित रूप से किया जाता है। "व्यवसाय में वे संपूर्ण मानवीय क्रियाएं आ जाती हैं, जो वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण के लिए की जाती है, जिनका उद्देश्य अपनी सेवाओं द्वारा समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति करके लाभ अर्जन करना होता है।

भगवान का हेतु रहित सौहार्द, महात्मा किसे कहते है

 


-पुस्तक                भगवान का हेतु रहित सौहार्द, महात्मा किसे कहते है 

-लेखक                 श्री जयदयाल गोयंदका जी

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या               64

-मूल्य                       3/-
 
 
 
महात्मा’ शब्द का अर्थ है ‘महान् आत्मा’ यानी सबका आत्मा ही जिसका आत्मा है | इस सिद्धान्त से ‘महात्मा’ शब्द वस्तुत: एक परमेश्वर के लिये ही शोभा देता है, क्योंकि सबके आत्मा होने के कारण वे ही महात्मा हैं | श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान् स्वयं कहते हैं-
 
 
‘हे अर्जुन ! मैं सब भूतप्राणियों के हृदय में स्थित सबका आत्मा हूँ |’
परन्तु जो पुरुष भगवान् को तत्त्व से जानता है अर्थात् भगवान् को प्राप्त हो जाता है वह भी महात्मा ही है, अवश्य ही ऐसे महात्माओं का मिलना बहुत ही दुर्लभ है | 

किसान और गाय

 


-पुस्तक                 किसान और गाय 

-लेखक                 श्री स्वामी रामसुख जी

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या               64

-मूल्य                       5/-
 
 
 

किसानों के लिये व्यावहारिक शिक्षा और गाय-पालन की महत्ता का एक सुन्दर विवेचन।

शिखा धारणकी आवस्यकता

 


 -पुस्तक                शिखा धारणकी आवस्यकता   

-लेखक                 श्री स्वामी रामसुख जी

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या               64

-मूल्य                       4/-
 
 
 
शिखा रखने तथा उसके नियमों का यथावत् पालन करने से मनुष्य को सद्बुद्धि, सद्विचार आदि की प्राप्ति होती है। ... शिखा रखने से मनुष्य लौकिक तथा पारलौकिक समस्त कार्यों में सफलता प्राप्त करता है।  शिखा रखने से मनुष्य प्राणायाम, अष्टांगयोग आदि यौगिक क्रियाओं को ठीक-ठीक कर सकता है।

श्री हनुमान चालीसा

-पुस्तक                 श्री हनुमान चालीसा   

-लेखक                 श्री तुलसीदास जी

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या               32

-मूल्य                       2/-
 
 
 

इस हनुमान चालीसा में सुंदर चित्र हैं। मेरा विश्वास है कि इस हनुमान चालीसा को नियमित रूप से श्रद्धा के साथ पढ़ने से जीवन के सभी संकट दूर हो जाते हैं और सफलता मिलने लगती है।

श्री शिव चालीसा



-पुस्तक                 श्री शिव चालीस

-लेखक                 श्री .....

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या             32

-मूल्य                     2/-
 
 
 
 

शिवजी भगवान शिव की आराधना के लिए सबसे आसान मंत्र है "ऊं नम: शिवाय"। इस मंत्र के साथ शिवजी की पूजा में शिव चालीसा का भी उपयोग किया जाता है। शिव चालीसा हिन्दू धार्मिक पुस्तकों में भी वर्णित है।

श्रीविष्णुसहस्त्रनामस्तोत्र

 


-पुस्तक                 श्रीविष्णुसहस्त्रनामस्तोत्र 

-लेखक                 श्री ......

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या            32

-मूल्य                     2/-
 
 
 
 
श्री विष्णु सहस्रनाम में भगवान का रूप वैभव है तो सहस्रनाम में उसकी नाम रमणीयता है। महाभारत युद्ध की विभीषिका से क्षुब्ध धर्मराज युधिष्ठिर अपने भाइयों तथा पत्नी सहित शरशय्या पर लेटे भीष्म पितामह के सन्निकट गए और उनसे अनेक प्रकार की शंकाओं का समाधान करने का आग्रह किया। ज्यों ही पितामह ने उपदेश देना प्रारंभ किया त्यों ही द्रोपदी किंचित् हंस पड़ी। पितामह मौन हो गए और अविचलित भाव से द्रौपदी से पूछने लगे, ‘‘बेटी तू क्यों हंसी?  द्रौपदी ने सकुचाकर कहा, ‘‘दादाजी, मेरे अविनयको क्षमा करें। मुझे यों ही हंसी आ गई।’’  पितामह ने कहा, ‘‘नहीं बेटी, तू अभिजात परिवार की संस्कारी वधू है। तू यों ही नहीं हंस सकती। इसके पीछे कोई रहस्य अवश्य होना चाहिए।’’  द्रौपदी ने पुनः कहा, ’’नहीं दादा जी, कुछ रहस्य नहीं है। पर यदि आप आज्ञा करते हैं तो मैं पुनः क्षमा याचना कर पूछती हूं कि आज तो आप बड़े ही गंभीर होकर कर्तव्य पालन का उपदेश दे रहे हैं, परंतु जब दुष्ट कौरव दुःशासन आप सबकी सभा में विराजमान होते हुए मुझे निर्वस्त्र कर रहा था, तब आपका ज्ञान और आपकी बुद्धि कहां चली गई थी?  यह बात स्मरण आते ही मैं अपनी हंसी न रोक सकी। मुझसे अशिष्टता अवश्य हुई है जिसके लिए मैं अत्यंत लज्जित हूं। क्षमा चाहती हूं।’’  पितामह द्रौपदी के वचन सुनकर बोले, ‘‘ बेटी, क्षमा मांगने या लज्जित होने की कोई बात नहीं है। तुमने ठीक ही जिज्ञासा की है और इसका उत्तर यह है कि उस समय मैं कौरवों का अन्न खा रहा था जो शुद्ध नहीं था, विकारी था। इसी कारण मेरी बुद्धि मारी गई थी परंतु अर्जुन के तीक्ष्ण वाणों से मेरे शरीर का अशुद्ध रक्त निकल गया है। अतः अब मैं अनुभव कर रहा हूं कि जो कुछ कहूंगा, वह मानव मात्र के लिए कल्याण-प्रद होगा।’’ तभी धर्मराज ने उनसे पूछा कि वह ऐसा कोई सरल उपाय बता दें जिससे लोक कल्याण-साधित हो सके। इसी अनुरोध पर पितामह ने जीव जगत के अंतर में स्पंदित परम-सत्य का साक्षात्कार कराने वाले श्रीविष्णु सहस्रनामों का महत्व प्रतिपादित किया। 
 
 
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श्री दुर्गाचलीसा

 


-पुस्तक                 श्री दुर्गाचलीसा 

-लेखक                 श्री ..

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या               32

-मूल्य                       2/-
 
 
 
यहां सभी पाठकों के लिए प्रस्तुत है पवित्र श्री दुर्गा चालीसा। नवरात्रि के दिनों के अलावा भी दुर्गा चालीसा का नित्य पाठ करने से मां दुर्गा अपने भक्त पर प्रसन्न होती हैं और वे हर तरह के संकट दूर करती हैं।