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19 Aug 2021

श्रीमद् भागवद् गीता तत्वविवेचनी

 


-पुस्तक         श्रीमद् भागवद् गीता  तत्वविवेचनी

-लेखक         भगवान सुकदेव जी

-प्रकाशक      गीताप्रस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या      800

-मूल्य             170/-

 

 

महाभारत के युद्ध के समय जब अर्जुन युद्ध करने से मना करते हैं तब श्री कृष्ण उन्हें उपदेश देते है और कर्म व धर्म के सच्चे ज्ञान से अवगत कराते हैं। श्री कृष्ण के इन्हीं उपदेशों को “भगवत गीता” नामक ग्रंथ में संकलित किया गया है। 


गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं।

 

प्रथम अध्याय

 प्रथम अध्याय का नाम अर्जुनविषादयोग है। वह गीता के उपदेश का विलक्षण नाटकीय रंगमंच प्रस्तुत करता है  अर्जुन निर्णय नहीं कर पा रहा था कि युद्ध करे अथवा वैराग्य ले ले। क्या करें, क्या न करें, कुछ समझ में नहीं आता था। इस मनोभाव की चरम स्थिति में पहुँचकर उसने धनुषबाण एक ओर डाल दिया।पहले अध्याय में सामान्य रीति से भूमिका रूप में अर्जुन ने भगवान से अपनी स्थिति कह दी।

प्रथम अध्याय में दोनों सेनाओं का वर्णन किया जाता है

 

दूसरे अध्याय का नाम सांख्ययोग है। इसमें जीवन की दो प्राचीन संमानित परंम्पराऔ का तर्कों द्वारा वर्णन आया है। अर्जुन को उस कृपण स्थिति में रोते देखकर कृष्ण ने उनका ध्यान दिलाया है कि इस प्रकार का क्लैव्य और हृदय की क्षुद्र दुर्बलता अर्जुन जैसे वीर के लिए उचित नहीं। 

  तीसरा अध्याय 

तीसरे अध्याय का नाम कर्मयोग है। तीसरे अध्याय में अर्जुन ने इस विषय में और गहरा उतरने के लिए स्पष्ट प्रश्न किया कि सांख्य और योग इन दोनों मार्गों में आप किसे अच्छा समझते हैं और क्यों नहीं यह निश्चित कहते कि मैं इन दोनों में से किसे अपनाऊँ? इसपर कृष्ण ने भी उतनी ही स्पष्टता से उत्तर दिया कि लोक में दो निष्ठाएँ या जीवनदृष्टियाँ हैं-सांख्यवादियों के लिए ज्ञानयोग है और कर्ममार्गियों के लिए कर्मयोग है। यहाँ कोई व्यक्ति कर्म छोड़ ही नहीं सकता। प्रकृति तीनों गुणों के प्रभाव से व्यक्ति को कर्म करने के लिए बाध्य करती है। कर्म से बचनेवालों के प्रति एक बड़ी शंका है, वह यह कि वे ऊपर से तो कर्म छोड़ बैठते हैं पर मन ही मन उसमें डूबे रहते हैं। यह स्थिति असह्य है और इसे कृष्ण ने गीता में मिथ्याचार कहा है।

चौथा अध्याय  

चौथे अध्याय में, जिसका नाम ज्ञान-कर्म-संन्यास-योग है, यह बाताया गया है कि ज्ञान प्राप्त करके कर्म करते हुए भी कर्मसंन्यास का फल किस उपाय से प्राप्त किया जा सकता है। यहीं गीता का वह प्रसिद्ध आश्वासन है कि जब जब धर्म की ग्लानि होती है तब तब मनुष्यों के बीच भगवान का अवतार होता है, भगवान अर्थात् की शक्ति विशेष रूप से मूर्त होती है।  

  

 

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

          अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥

 परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।

                धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥४-८॥

  

 

इस प्रकार से गीता में 18 अध्याय का विस्तार से वर्णन मिलता है।

 








18 Aug 2021

पातञ्जलयोगप्रदीप


 

-पुस्तक            पातञ्जलयोगप्रदीप

 -लेखक           श्रीस्वामीओमानन्द तीर्थ

 -प्रकाशक        गीता प्रेस गोरखपुर

 -पृष्ठसंख्या        720

 -मूल्य               200/-

 

 

श्रद्धेय श्री ओमानन्द महाराज द्वारा प्रणीत इस ग्रन्थ में पातञ्जलयोग-सूत्रों की व्याख्या तत्त्ववैशारदी, भोजवृत्ति तथा योगवार्तिक के अनुसार विस्तृत रूप से की गयी है। इस में उपनिषदों तथा भारतीय दर्शनों के विभिन्न तत्त्वों की सुन्दर समालोचना है।

पतंजलि का योग सूत्र 195 संस्कृत का एक संग्रह है सूत्र  के सिद्धांत और व्यवहार पर योग योग सूत्र ऋषि द्वारा 500 ईसा पूर्व और 400 सीई के बीच कुछ समय संकलित किया गया था पतंजलि भारत में, जिन्होंने बहुत पुरानी परंपराओं से योग के बारे में ज्ञान को व्यवस्थित और व्यवस्थित किया। पतंजलि का योग सूत्र मध्यकालीन युग में सबसे अधिक अनुवादित प्राचीन भारतीय पाठ था, जिसका लगभग चालीस भारतीय भाषाओं और दो गैर-भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया था: पुराना जवानी तथा  अरवी पाठ 12 वीं से 19 वीं सदी के लगभग 700 वर्षों तक सापेक्ष अस्पष्टता में गिर गया, और 19 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध के प्रयासों के कारण वापसी की विवेकानंद जी  जिसने 20 वीं शताब्दी में फिर से वापसी के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त की।

 

इस की व्याख्या सरल तथा सुगम है। भूमिकारूप में षड्दर्शन समन्वय तथा तत्त्वविश्लेषण-प्रणाली से यह ग्रन्थ और भी उपयोगी हो गया है। यह योग-दशर्न के जिज्ञासुओं के लिये नित्य पठनीय है।