-पुस्तक साधक में साधुता
-लेखक पं. श्री गयाप्रसादजी
-प्रकाशक गीताप्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 255
-मूल्य 35/-
अध्यात्म जगत में सत्संग की बड़ी महिमा है। जो व्यक्ति मानव जीवन को प्राप्त कर इस जन्म में जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होना चाहता है, अर्थात जिसके हृदय में आत्मा को ग्रहण करने और उसके लिए निरंतर कार्य करने की प्रबल भावना हो, वही 'साधक' होता है। क्योंकि साधक में साधक का सात्त्विकता होना चाहिए, ध्यान के बिना साधना सिद्ध नहीं हो सकती। वास्तव में सांसारिक लोग साधुता से अनजान हैं, वे व्यवहार हैं, लेकिन यह नहीं जानते कि उनके व्यवहार और जीवन में ऋषि कैसे आए।
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