-पुस्तक जन्म-मरण से छुटकारा
-लेखक श्री जयदयाल गोयन्दका जी
-प्रकाशक गीताप्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 126
-मूल्य 15/-
यदि जन्म न हो अर्थात् जन्म-मरण का क्रम रूक जाये, तो इसके लिए हमें पूर्व जन्म-जन्मान्तरों में किए हुए सभी अशुभ कर्मों का फल भोग कर भविष्य में जन्म
व मृत्यु के कारण शुभ व अशुभ कर्मों को बन्द करना होगा व परमार्थ के कर्म
यथा ईश्वरोपासना, यज्ञ, दान, सत्संगति आदि कर्म ही करने होंगे।
इसके लिए मरते समय सांसारिक चीजों से मन को दूर रखना जरूरी है. यदि मोक्ष चाहिए तो मृत्यु
के अंतिम क्षणों में ओम का जाप करें. ओम का जाप मोक्षदायक माना गया है.
इसके अलावा यदि संभव हो तो किसी पवित्र तीर्थ में स्नान करें या आसन लगाकर
गायत्री मंत्र का जाप करें.
जब उसका अविर्भाव होता है तो
सारा जीवन प्रेम मय हो उठता है सारा संसार अथाह सागर में डूबा हुवा दिखाई
पड़ता है। सारे दुःख कष्ट और सारी पीडाएं सारी व्यथाएं हमेशा हमेशा के लिए
समाप्त हो जाती है। इसी को भाव मुक्ति कहते हैं यानि आवागमन से मुक्ति जन्म-मरण से मुक्ति ।