-पुस्तक व्यवहार और परमार्थ
-लेखक श्री हनुमानप्रसाद पोदार जी
-प्रकाशक गीताप्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 270
-मूल्य 30/-
इस
समय सारे संसारमें द्वेष, कलह और मारकाट मची हुई है । सभी लोग एक दूसरेका
विनाश करनेमें लगे हुए हैं, प्रकृति मानो पूर्णरूपसे क्षुब्ध हो रही है,
किसीके जीवनमें सुखशान्ति नहीं है, प्राणिमात्र विकल है । यह सब ईश्वरमें
अविश्वास, सच्चे धर्मपर अनास्था और सदाचारके लोपका परिणाम है । इस भीषण
स्थितिसे त्राण पाने और मानवजीवनके प्रधान लक्ष्य भगवस्त्प्राप्तिके पुनीत
पथपर लोगोंको अग्रसर करनेके लिये आवश्यकता है ईश्वरीय भावोंके पवित्र
प्रचारकी । ऐसे आध्यात्मिक भाव सत्यसंगके बिना सहजमें नहीं मिल सकते ।
परन्तु सत्युरुषोंका सद्र: सब लोगोंको मिलना कठिन है । इसलिये सत्युरुषोंकी
वाणीका प्रचार किया जाता है, जिससे दूर-दूर के स्थानोंमें रहनेवाले लोग भी
अनायास ही सत्यसंग लाभ उठा सकें । ' तत्त्वचिन्तामणि' ग्रन्थ ऐसा ही अन्ध
है । अबतक इसके चार भाग प्रकाशित हो चुके हैं और उनसे लोगोंको बड़ा लाभ
पहुँचा है । यह उसका पाँचवाँ भाग है । इसमें भी 'कल्याण 'में प्रकाशित
लेखोंका ही संग्रह है । इन लेखोंमें अनुभवसिद्ध तत्त्वोंका विवेचन और आदर्श
सदगुणोंका प्रदर्शन बड़े ही सुन्दर ढंगसे किया गया है । आसुरी दुर्गुणोंसे
छूटकर अपनी ऐहिक और पारलौकिक उन्नति चाहनेवाले और मनुष्यजीवनमें परम
ध्येयकी प्राप्ति करनेकी इच्छा रखनेवाले प्रत्येक नरनारीको इस अन्धका
अध्ययन और मनन करना चाहिये । आशा है, मेरे इस निवेदनपर सब लोग ध्यान देंगे