-पुस्तक गीता-माधुर्यम्
-लेखक स्वामी श्री रामसुखदास जी
-प्रकाशक गीताप्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 128
-मूल्य 20/-
श्रीमद्भगवद्गीता मनुष्यमात्रको सही मार्ग दिखानेवाला सार्वभौम महाग्रन्थ है । लोगोंमें इसका अधिकसेअधिक प्रचारहो, इस दृष्टिसे परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराजने इस ग्रन्थको प्रश्नोत्तरशैलीमें बड़े सरल ढंगसे प्रस्तुत किया है, जिससे गीता पढ़नेमें सर्वसाधारण लोगोंकी रुचि पैदा हो जाय और वे इसके अर्थको सरलतासे समझ सकें । नित्यपाठ करनेके लिये भी यह पुस्तक बड़ी उपयोगी है।पाठकोंसे मेरा निवेदन है कि इस पुस्तकको स्वयं भी पढ़ें और अपने मित्रों, सगेसम्बन्धियों आदिको भी पढ़नेके लिये प्रेरित करें ।
ज्ञानपारावारप्रसूता लौकिक प्रभाभासुर दिव्यालोक है । किं वा इस भीषण भवाटवीमें अन्तहीन यात्राके पथिक यायावर प्राणीके लिये यह अनुपम मधुर पाथेय है । ज्ञानभाण्डागार उपनिषदोंका यह सारसर्वस्व है । प्रस्थानत्रयीमें प्रतिष्ठापित यह गीता मननपथमानीयमान होकर भग्नावरणचिद्विशिष्ट वेद्यान्तरसम्पर्कशून्य अपूर्व आनन्दोपलब्धिकी साधिका है । यह मानसिक मलापनयनपुर सर मनको शिवसंकल्पापादिका है । कर्म, अकर्म और विकर्मकी व्याख्या करनेवाली यह गीता चित्तको आह्लादित करती है । नैराश्य निहारको दूर कर कर्मवादका उपदेश देती है ।
इसकी महनीयता इसी बातसे व्यक्त होती है कि जितनी व्याख्या गीताकी हुई है उतनी व्याख्या अन्य किसी ग्रन्थकी अद्यावधि नहीं हुई है । यह विश्वविश्रुत भारतीय संस्कृतिकी अक्षय्य भाण्डागार है । तत्त्वबुभुत्सुओंके लिये कल्याणमार्गोपदेशिका गीता सर्वत्र समादृत है ।
गीताकी अनेक व्याख्याएँ हैं, किन्तु उन सबमें श्रद्धेय स्वामी रामसुखदासजी महाराजद्वारा लिखित साधकसंजीवनी व्याख्याका अपना एक विशिष्ट स्थान है । गीताके गंभीर हार्दको व्यक्त करनेवाली यह व्याख्या गूढ़सेगूढ़ भावको अति सरलतासे व्यक्त करती है । गीताके रहस्यके जिज्ञासुके लिये आवश्यक है कि वह साधकसंजीवनीका अध्ययन अवश्य करें ।