-पुस्तक अनन्य भक्ति से भगवत्प्राप्ति
-लेखक श्री जयदयाल गोयन्दका जी
-प्रकाशक गीताप्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 190
-मूल्य 20/-
अनन्य भक्ति से आपकी शरण होकर आपके सगुण-साकार रूप की निरन्तर पूजा-आराधना करते हैं, अन्य जो आपकी शरण न होकर अपने भरोसे आपके निर्गुण-निराकार रूप की पूजा-आराधना करते हैं, इन दोनों प्रकार के योगीयों में किसे अधिक पूर्ण सिद्ध योगी माना जाय?
जो मनुष्य मुझमें अपने मन को स्थिर करके निरंतर मेरे सगुण-साकार रूप की पूजा में लगे रहते हैं, और अत्यन्त श्रद्धापूर्वक मेरे दिव्य स्वरूप की आराधना करते हैं वह मेरे द्वारा योगियों में अधिक पूर्ण सिद्ध योगी माने जाते हैं।
भगवान और महात्माओं के स्वरूप
प्रभाव और स्वभाव आदिका दिग्दर्शन कराते हुए उन पर अतिशय श्रद्धा-विश्वास
करके उनसे परम लाभ उठाने की प्रेरणा की गयी है, जो कि साधन का एक प्रधान
महत्पूर्ण अंग है ।
इस पुस्तक में अनन्य भक्ति से भगवत्प्राप्ति के साधन को बताया गया है।