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26 Aug 2021

साधन की आवश्यकता

 


-पुस्तक           साधन की आवश्यकता

-लेखक           श्री जयदयाल गोयन्दका जी 

-प्रकाशक       गीताप्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या       160

-मूल्य               15/-

 

 

श्री रामचरितमानस के अनुसार साधन का  अर्थ ध्यान भजन  होता है जैसे-

साधन धाम मोक्ष कर द्वारा, पाई न जेहि परलोक संवारा।।654।।

अर्थात: यह शरीर साधनों का घर और मोक्ष का द्वार है; इसे पाकर जिसने परलोक (मुक्ति) को नहीं सुधारा।

 साधन का अर्थ किसी कार्य के लिए पर्याप्त वस्तुओं का संग्रह।

धर्म का प्रभाव भी शब्दों के अर्थ में पड़ता है। धर्म को केन्द्र में रखकर जो लड़ते हैं वे अक्सर अपने नकारात्मक शब्दों को अपने विरोधी धर्म से जोड़ने का प्रयास करते है। एक उदाहरण हैं 'काफ़िर' (श्रद्धा न रखने वाला) जिसे कभी-कभी इस्लाम को मानने वाले हिन्दुओं से जोड़ते हैं। उसी तरह आज हिन्दुओं के यहां 'जेहाद' (पवित्र उद्देश्य के साथ संघर्ष करना) शब्द का अर्थ आतंकवाद से जोड़ा जाने लगा है। 

भाषा मानव व्यवहार का प्रमुख साधन है। मनुष्य स्वयं परिवर्तनशील है इसलिए उनका प्रमुख व्यवहार भाषा भी परिवर्तनशील है। भाषा में परिवर्तन की यह प्रक्रिया उसके अंगों को भी प्रभावित करती है। अर्थ भी उससे अप्रभावित नहीं रहता। अर्थ परिवर्तन के कारण और दिशाओं का यहां संक्षेप में वर्णन प्रस्तुत है।