-पुस्तक प्रेम का सच्चा स्वरूप और शोकनास के उपाए
-लेखक श्री जयदयाल गोयंदका जी
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 62
-मूल्य 3/-
प्रेमका वास्तविक वर्णन हो नहीँ सकता । प्रेम जीवन को प्रेममय बना देता है।
प्रेम गूँगेका गुड़ है। प्रेमका आनंद अवर्णनीय होता है।रोमांच,अश्रुपात,प्रकम्प आदि तो उसके बाह्य लक्षण हैँ,भीतरके रस प्रवाहको कोई कहे भी तो कैसे ?
बरसते हुए मेघ जिधरसे निकलते हैँ उधरकी ही धराको तर कर देते हैँ।इसी प्रकार प्रेमकी वर्षासे यावत् चराचरको तर कर देता है । प्रेमी के दर्शन मात्रसे ही हृदय तर हो जाता है और लहलहा उठता है ।
तुलसीदासजी महाराजने कहा है—