-पुस्तक मूर्तिपूजा और नाम जप
-लेखक श्री स्वामी रामसुख जी
-प्रकाशक श्री गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 62
-मूल्य 5/-
प्रश्न ‒ नाम-जपसे भाग्य (प्रारब्ध) पलट सकता है ?
उत्तर ‒ हाँ, भगवन्नाम के जपसे, कीर्तनसे प्रारब्ध बदल जाता है, नया प्रारब्ध बन जाता है; जो वस्तु न मिलनेवाली हो वह मिल जाती है; जो असम्भव है, वह सम्भव हो जाता है ‒ ऐसा सन्तों का, महापुरुषोंका अनुभव है । जिसने कर्मों के फलका विधान किया है, उसको कोई पुकारे, उसका नाम ले तो नाम लेनेवालेका प्रारब्ध बदलनेमें आश्चर्य ही क्या है ? ये जो लोग भीख माँगते फिरते हैं, जिनको पेटभर खानेको भी नहीं मिलता, वे अगर सच्चे हृदय से नाम-जप में लग जायँ तो उनके पास रोटियोंका, कपड़ोंका ढेर लग जायगा; उनको किसी चीजकी कमी नहीं रहेगी । परन्तु नाम-जपको प्रारब्ध बदलनेमें, पापोंको काटनेमें नहीं लगाना चाहिये । जैसे अमूल्य रत्नके बदलेमें कोयला खरीदना बुद्धिमानी नहीं है, ऐसे ही अमूल्य भगवन्नाम को तुच्छ कामोंमें लगाना बुद्धिमानी नहीं है ।