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20 Oct 2021

गंगालहरी

 


-पुस्तक                 श्री गंगालहरी

-लेखक                 श्री .....

-प्रकाशक             श्री गीता प्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या             30

-मूल्य                     4/-
 
 
 
 
शाहजहां के शासनकाल में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच धार्मिक श्रेष्ठता को लेकर एक शास्त्रार्थ हुआ। इस शास्त्रार्थ में विजयी को पुरस्कार और पराजित होने वाले को कारागार में डालने का विधान था। यह शास्त्रार्थ कई दिनों तक चला, जिसमें पंडितों को हर बार हार का सामना करना पड़ा। जिसके परिणामस्वरूप उन सभी को सजा के तौर पर जेल भेजा गया। उस समय काशी में महापंडित, महाज्ञानी जगन्नाथ मिश्र रहा करते थे। पंडितों की पराजय की खबर सुनकर वह शाहजहां के महल पहुंचे और उनसे शास्त्रार्थ को आगे बढ़ाने को कहा। शास्त्रार्थ निरंतर 3 दिन और 3 रातों तक चला और देखते ही देखते सभी मुसलमान विद्वान इसमें परास्त होते चले गए। इस शास्त्रार्थ को झरोखे में बैठी शाहजहां की बेटी ‘लवंगी’ भी देख रही थी। बादशाह जगन्नाथ मिश्र की विद्वता से काफी प्रसन्न थे, उन्हें विजेता घोषित कर दिया गया। शाहजहां ने मिश्र से कहा कि वह जो चाहे मांग सकते हैं, वही उनका पुरस्कार होगा। जगन्नाथ मिश्र ने कहा कि जितने भी पंडितों को शाहजहां द्वारा बंदी बनाया गया है, उन्हें मुक्त कर दिया जाए।  बादशाह ने उन्हें अपने लिए कुछ मांगने को कहा। इस पर जगन्नाथ ने लवंगी का हाथ मांग लिया और लवंगी के साथ काशी आ गए। मिश्र ने शास्त्रीय विधि के साथ से लवंगी को संस्कारित कर पाणिग्रहण कर लिया। ब्राह्मण इस बात से बहुत कुपित हुए और उन्होंने जगन्नाथ को जाति से बहिष्कृत कर दिया। इस अपमान से जगन्नाथ मिश्र बहुत दुःखी हुए। इस दुख से छुटकारा पाने के लिए एक दिन उन्होंने ऐसा निर्णय किया, जिसके बाद रचना हुई गंगा के श्रेष्ठतम काव्य गंगा लहरी की। लेकिन इस ग्रंथ की रचना करने के लिए उन्हें अपने और लवंगी के प्राणों की आहुति देनी पड़ी।  एक दिन पंडित जगन्नाथ मिश्र लवंगी को लेकर काशी के दश्वाश्वमेध घाट पर जा बैठे जहां 52 सीढि़यां हैं। लवंगी को अपने साथ बैठाकर वे गंगा की स्तुति करने लगे। ऐसा कहा जाता है कि जैसे ही जगन्नाथ मिश्र एक पद रचते, गंगा का पानी और ऊपर होने लगा। 52वें पद का गान करते ही गंगा ने उन्हें अपनी गोद में समा लिया। लवंगी और जगन्नाथ मिश्र दोनों ही जलधार में बहने लगे और उसी में जलसमाधि ले ली। पंडित जगन्नाथ मिश्र द्वारा उस समय की गई गंगा की स्तुति को गंगा लहरी के नाम से जाना जाता है। इसे मां गंगा की श्रेष्ठतम स्तुति मानी जाती है।