-पुस्तक बृज की चर्चा
-लेखक श्री श्यामदास जी
-प्रकाशक श्री हरिनाम संकीर्तन प्रेस वृंदावन
-पृष्ठसंख्या 198
-मूल्य 100/-
ब्रजभाषा के क्षेत्र विस्तार की दो स्थितियाँ रहीं। प्रथम स्थिति
भाषा-वैज्ञानिक इतिहास के क्रम से उत्पन्न हुई। जब पश्चिमी या मध्यदेशीय
भाषा अनेक कारणों से सामान्य ब्रज-क्षेत्र की सीमाओं का उल्लंघन करने लगी,
तब स्थानीय रुपों से समन्वित होकर, वह एक विशिष्ठ भाषा शैली का रूप ग्रहण
करने लगी और ब्रजभाषा-शैली का एक वृहत्तर क्षेत्र बना। जिन क्षेत्रों में
यह कथ्य भाषा न होकर केवल साहित्य में प्रयुक्त कृत्रिम, मिश्रित और
विशिष्ट रूप में ढल गई और विशिष्ट अवसरों, संदर्भों या काव्य रुपों में
रुढ़ हो गई, उन क्षेत्रों को 'शैली क्षेत्र' माना जाएगा। शैली-क्षेत्र
पूर्वयुगीन भाषा-विस्तार या शैली-विस्तार के सहारे बढ़ता है। पश्चिमी या
मध्यदेशी अपभ्रंश के उत्तरकालीन रुपों की विस्तृति इसी प्रकार हुई।
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