-पुस्तक सहज समाधि भली
-लेखक श्री राजेंद्र कुमार धवन
-प्रकाशक गीताप्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 43
-मूल्य 15/-
सहज जीवन द्वारा सहज समाधि मिल सकती है, इस सत्य का उदघाटन स्वामी रामसुखदास जी ने विविध बोध-कथाओं द्वारा किया है। स्वामी जी कहते हैं जिसे हम खोजने निकलते हैं वह पाया ही हुआ है। जिस दिन पाने की सारी वासनाएं पक कर गिर जाती हैं वैसे ही सत्य के दर्शन हो जाते हैं। स्वामी जी कहते हैं, जहां सब मौन हो जाता है, जहां सब शून्य हो जाता है, जहां कोई लहर नहीं उठती, मात्र सन्नाटा रह जाता है, वह ‘‘शून्य हो जाने की कला ही महाकला है।’’
समाधि सहज ही होगी। असहज जो हो, वह समाधि नहीं है। प्रयास और प्रयत्न से जो हो, वह मन के पार न ले जाएगी, क्योंकि सभी प्रयास मन का है। और जिसे मन से पाया है, वह मन के ऊपर नहीं हो सकता। जिसे तुम मेहनत करके पाओगे, वह तुमसे बड़ा नहीं होगा। जिस परमात्मा को ‘तुम’ खोज लोगे, वह परमात्मा तुमसे छोटा होगा। परमात्मा को ‘प्रयास’ से पाने का कोई भी उपाय नहीं है। उसे तो ‘अप्रयास’ में ही पाया जा सकता है। ‘तुम’ उसे न पा सकोगे; तुम मिटो, तो ही उसका पाना हो सकेगा। इसलिए परमात्मा की खोज वस्तुतः परमात्मा में खोने की व्यवस्था है। मन की असफलता जहां हो जाती है, वहां समाधि फलित होती है।
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