1 Sept 2021

जित देखूँ तित तू

 


-पुस्तक           जित देखूँ तित तू

-लेखक           स्वामी रामसुखदास जी 

-प्रकाशक       गीताप्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या        144

-मूल्य               15/-

 

 

प्रस्तुत पुस्तकमें श्रद्धेय श्रीस्वामीजी महाराजके द्वारा रचित नौ लेखोंका संग्रह है ये लेख भगवत्प्रेमी साधकोंके लिये बहुत कामके हैं और सुगमतापूर्वक भगवत्वप्राप्ति करानेमें बहुत सहायक हैं

पुस्तकमें कुछ बातोंकी पुनरावृत्ति भी हो सकती है परन्तु समझानेकी दृष्टिसे इस प्रकारकी पुनरावृत्ति होना दोष नहीं है उपनिषदमें भी तत्त्वमसि’ -इस उपदेशकी नौ बार पुनरावृत्ति हुई है।  

इसलिये ब्रह्मसूत्रमें आया है-’ आवृत्तिरसकृदुपदेशात्’ (४। ) शुक्लयजुर्वेदसंहिताके उव्वटभाष्यमें आया हैसंस्कारोज्ज्लनार्थं हित पथ्य पुन: पुनरुपदिश्यमानं दोषाय भवतीति’ (१। २१)  

अर्थात् संस्कारोंको उद्बुद्ध करनेके उद्देश्यसे हित तथा पथ्यकी बातका बार-बार उपदेश करनेमें कोई दोष नहीं है

पुस्तकमें सभी बातें सब जगह नहीं लिखी जा सकतीं अत: पाठकको किसी जगह कोई कमी दिखायी दे तो पूरी पुस्तक पढ़नेसे दूसरी जगह उसका समाधान मिल सकता है फिर भी कोई कमी या भूल दिखायी दे तो पाठक सूचित करनेकी कृपा करें

पाठकोंसे नम्र निवेदन है कि वे भगवत्प्राप्तिके उद्देश्यसे इस पुस्तकको मनोयोगपूर्वक पढ़ें, समझें और लाभ उठायें

 

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