-पुस्तक परमशान्ति का मार्ग-भाग 2
-लेखक श्री जयदयाल गोयन्दका जी
-प्रकाशक गीताप्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 192
-मूल्य 20/-
हम जब इस परम अवस्था में पहुँच जाते हैं, तब सबकुछ बदल जाता है।
प्रेम और शांति का मार्ग हमारे सोचने के लिए एक अनूठा रास्ता बताती
है, जिसने दादी जानकी को इस लक्ष्य तक पहुँचाया है।
यह एक ऐसा दर्पण है, जो हमें यह दिखाता है कि हम क्या हैं और क्या बन सकते हैं। यह सबको आगे बढ़ने में मदद करेगी।
अति दो प्रकार की होती है। एक अति है भोग-विलास में, काम-सुख में ऊपर से नीचे तक डूब जाना। गिरे हुए, भूले हुए लोग इस अति में पड़ते हैं। दूसरी अति है शरीर को अत्यधिक पीड़ा देकर तपस्या करना। अपने को विभिन्न प्रकार से पीड़ा पहुंचाना। दोनों अति को छोड़कर तथागत ने एक मध्यम मार्ग खोज निकाला, जिसे अष्टांगिक मार्ग कहते हैं। यह मार्ग शांति, ज्ञान और निर्वाण देने वाला है। अमृत की ओर ले जाने वाले मार्गों में अष्टांगिक मार्ग परम मंगलमय मार्ग है।
जीवन के सत्य को उद्घाटित कर आध्यात्मिक प्रेम और शांति का मार्ग प्रशस्त करती एक विशिष्ट पुस्तक।.
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