-पुस्तक तीर्थांङ्क कल्याण
-लेखक गीताप्रेस गोरखपुर
-प्रकाशक गीताप्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 830
-मूल्य 230/-
तीर्थ धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व वाले स्थानों को कहते हैं जहाँ
जाने के लिए लोग लम्बी और अकसर कष्टदायक यात्राएँ करते हैं। इन यात्राओं
को तीर्थयात्रा (pilgrimage) कहते हैं। हिन्दु धर्म के तीर्थ प्रायः देवताओं के निवास-स्थान महत्त्वपूर्ण तीर्थ हैं और इसके
अतिरिक्त कई तीर्थ महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक व्यक्तियों के जीवन से भी
सम्बन्धित हो सकते हैं। उदाहरण स्वरूप, बद्रीनाथ,रामेश्वरम,जगन्नाथपुरी
भारत की सांस्कृतिक एकता को मजबूत करने हेतु आदि शंकराचार्य नें भारत के चार दिशाओं में चार धामों की स्थापना की। उत्तर में बद्रीनाथ, दक्षिण में रामेश्वरम, पूरब में जगन्नाथपुरी एवं पश्चिम में द्वारका - हिन्दुओं के चार धाम हैं। पूर्व में हिन्दू इन धामों की यात्रा करना अपना पवित्र कर्तव्य मानते थे। कालान्तर में हिन्दुओं के नये तीर्थ आते गये हैं।
ब्रज चौरासी कोस यात्रा में दर्शनीय स्थलों की भरमार है। पुराणों के अनुसार उनकी उपस्थिति अब कहीं-कहीं रह गयी है। प्राचीन उल्लेख के अनुसार यात्रा मार्ग में-
- 12 वन
- 24 उपवन
- चार कुंज
- चार निकुंज
- चार वनखंडी
- चार ओखर
- चार पोखर
- 365 कुण्ड
- चार सरोवर
- दस कूप
- चार बावरी
- चार तट
- चार वट वृक्ष
- पांच पहाड़
- चार झूला
- 33 स्थल रासलीला के तो हैं हीं, इनके अलावा कृष्ण कालीन अन्य स्थल भी हैं। चौरासी कोस यात्रा मार्ग मथुरा में ही नहीं, अलीगढ़, भरतपुर, गुड़गांव, फ़रीदाबाद की सीमा तक में पड़ता है, लेकिन इसका अस्सी फ़ीसदी हिस्सा मथुरा में है।
कल्याण का वार्षिक विशेषांक - तीर्थांक, पुस्तक रूप में पुनर्मुद्रित
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