-पुस्तक श्रीराधा माधव चिन्तन
-लेखक श्रीहनुमान प्रसाद पोद्दार
-प्रकाशक गीताप्रस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 958
-मूल्य 100/-
श्रीराधा-माधव-चिन्तन
शास्त्रों के अनुसार ब्रह्माजी ने वृन्दावन में श्री कृष्ण के साथ साक्षात राधा का विधिपूर्वक विवाह संपन्न कराया था।बृज में आज भी माना जाता है कि राधा के बिना कृष्ण अधूरे हैं और कृष्ण
बिना श्री राधा। धार्मिक पुराणों के अनुसार राधा और कृष्ण की ही पूजा का
विधान है।
राधा रानी जी श्रीकृष्ण जी से ग्यारह माह बड़ी थीं। लेकिन श्री वृषभानु जी और कीर्ति देवी को ये बात जल्द ही पता चल गई कि श्री किशोरी जी ने अपने प्राकट्य से ही अपनी आंखे नहीं खोली है। इस बात से उनके माता-पिता बहुत दुःखी रहते थे। कुछ समय पश्चात जब नन्द महाराज कि पत्नी यशोदा जी गोकुल से अपने लाडले के साथ वृषभानु जी के घर आती है तब वृषभानु जी और कीर्ति जी उनका स्वागत करती है यशोदा जी कान्हा को गोद में लिए राधा जी के पास आती है। जैसे ही श्री कृष्ण और राधा आमने-सामने आते है। तब राधा जी पहली बार अपनी आंखे खोलती है। अपने प्राण प्रिय श्री कृष्ण को देखने के लिए, वे एक टक कृष्ण जी को देखती है, अपनी प्राण प्रिय को अपने सामने एक सुन्दर-सी बालिका के रूप में देखकर कृष्ण जी स्वयं बहुत आनंदित होते है। जिनके दर्शन बड़े बड़े देवताओं के लिए भी दुर्लभ है तत्वज्ञ मनुष्य सैकड़ो जन्मों तक तप करने पर भी जिनकी झांकी नहीं पाते, वे ही श्री राधिका जी जब वृषभानु के यहां साकार रूप से प्रकट हुई।
श्रीराधा-माधव-चिन्तन मे इन विषयो का विस्तार से वर्णन है-
श्रीराधा
श्रीकृष्ण
श्रीराधा-माधव
भावराज्य तथा लीला-रहस्य
प्रेम-तत्त्व
श्रीगोपांगना
प्रकीर्ण
आशा है, इस ग्रन्थ को लोग रुचिपुर्वक पढेंगे और इसमे निहित बहुमूल्य सामग्री से लाभान्वित होंगे।
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