-पुस्तक वेदान्त दर्शन
-लेखक .........
-प्रकाशक गीताप्रस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 478
-मूल्य 80/-
वेदान्त ज्ञानयोग का एक स्रोत है जो व्यक्ति को ज्ञान प्राप्ति की दिशा में उत्प्रेरित करता है। इसका मुख्य स्रोत उपनिषद है जो वेद ग्रंथो और वैदिक साहित्य का सार समझे जाते हैं। उपनिषद वैदिक साहित्य का अंतिम भाग है, इसीलिए इसको वेदान्त कहते हैं। कर्मकांड और उपासना का मुख्यत: वर्णन मंत्र और ब्राह्मणों में है, ज्ञान का विवेचन उपनिषदों में। 'वेदान्त' का शाब्दिक अर्थ है - 'वेदों का अंत' (अथवा सार)।
वेदान्त की तीन शाखाएँ जो सबसे ज्यादा जानी जाती हैं वे हैं: अद्वैत वेदान्त , विशिष्ट वेदान्त और द्वैत
तीनों ग्रंथों में प्रगट विचारों का कई तरह से व्याख्यान किया जा सकता है।
इसी कारण से ब्रह्म, जीव तथा जगत् के संबंध में अनेक मत उपस्थित किए गए
और इस तरह वेदान्त के अनेक रूपो का निर्माण हुआ था |
आरम्भ में उपनिषदों के लिए ‘वेदान्त’ शब्द का प्रयोग हुआ किन्तु बाद में उपनिषदों के सिद्धान्तों को आधार मानकर जिन विचारों का विकास हुआ, उनके लिए भी ‘वेदान्त’ शब्द का प्रयोग होने लगा।
वेदान्त दर्शन को वह्मसूत्र भी कहा जाता है। इसमे चार अध्याय औरप्रत्येक अध्याय मे चार पाद हैं जो कि विस्तार से दिये गये हैं।