-पुस्तक श्रीप्रेम - सुधा - सागर
-लेखक श्रीवेदव्यासजी
-प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 368
-मूल्य 120/-
श्रीमद् भागवत का दशम स्कन्ध श्रीप्रेम - सुधा - सागर के रुप मे प्रकाशित किया गया हैं।
श्री कृष्ण-लीला-रस-रसिक भक्तों के मन को स्वस्थ वैचारिक पुष्टि-हेतु गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित तथा स्वामी अखण्डानन्द सरस्वती द्वारा अनुवादित श्रीमद्भागवत के दशम-स्कन्ध का सरस शैली में यह भाषानुवाद है। जगह-जगह गूढ़ भावों के प्रकाश-हेतु इसे श्री कृष्णलीला की रसमयी विशद व्याख्या से अलंकृत किया गया है, ताकि सामान्य जन भी श्री कृष्णलीला-सिन्धु में अवगाहन कर इस धरा-धाम पर सुलभ अमृत का पान कर अमरत्व प्राप्त कर सकें।
राजा परिक्षित ने पूछा - भगवन! आपने चन्द्रवंश और सूर्यवंश के विस्तार तथा दोनों वंशों के राजाओं का अत्यंत अद्भुत चरित्र वर्णन किया है। भगवान के परम प्रेमी मुनिवर! आपने स्वभाव से ही धर्मप्रेमी यदुवंश का भी विशद वर्णन किया। अब कृपा करके उसी वंश में अपने अंश श्री बलराम जी के साथ अवतीर्ण हुए भगवान श्रीकृष्ण का परम पवित्र चरित्र भी हमें सुनाइये।
भगवान श्रीकृष्ण समस्त प्राणियों के जीवनदाता एवं सर्वात्मा हैं। उन्होंने यदुवंश में अवतार लेकर जो-जो लीलायें कीं, उनका विस्तार से हम लोगों को श्रवण कराइये। जिनकी तृष्णा की प्यास सर्वदा के लिए बुझ चुकी हैं, वे जीवन मुक्त महापुरुष जिसका पूर्ण प्रेम से अतृप्त रहकर गान किया करते हैं, मुमुक्षुजनों के लिए जो भवरोग की रामबाण औषध है तथा विषयी लोगों के लिए भी उनके कान और मन को परम आह्लाद देने वाला है,
भगवान श्रीकृष्णचन्द्र के ऐसे सुन्दर, सुखद, रसीले,
गुणानुवाद से पशुघाती अथवा आत्मघाती मनुष्य के अतिरिक्त और ऐसा कौन है जो
विमुख हो जाय, उससे प्रीति न करे ?।..............................................................