-पुस्तक प्रेम-भक्तिरस सधिका
-लेखक श्री स्वामी हरिदास जी महाराज
-प्रकाशक श्री ललित प्रकाशन वृन्दावन
-पृष्ठसंख्या 535
-मूल्य 400/-
जीव शिक्षा सिद्धांत के अठारह पद रसिक अन्य चक्र चूड़ामणि श्रीस्वामी हरिदासजी महाराज ईश्वरीय माधुर्य रसपूर्णा ह्रदय सागर के उज्जवल रत्नों के कोष है ।य़े प्रस्तुत गुण ग्रन्थ मै समाहित हैं।
श्री वृंदावन की उच्चतम रसोपासना-महामधुर रस सार के प्रथम प्रकाशक स्वामी श्री हरिदासजी महाराज है।
वे नित्यविहार रस के अनन्य गायक और उपासक है। उनकी रसिकता इस कोटि की है की उनके समका
लिन रसिक-संतो ने उन्हे रसिक अनन्य नृपति की उपाधि से आभूषित किया है।
अनन्य नृपति श्री स्वामी हरिदास।
ऐसौ रसिक भयो नहिं ह्रै हैभूमण्डल आकाश।।
भक्तमाल कार श्रीनाभा जी ने भी उनकी रसिक छाप बताई हैं।
प्रस्तुत पुस्तक जीव शिक्षा सिद्धांत के अठारह पद मे भावौ और गूढ रहस्य को सभी के लिए समझपाना सम्भव नही हें।इसकी भाषा गूढ समाधि भाषा हैंं
अठारह पदो की इस प्रेम -भक्तिरस-सधिका टीका मे परम आचार्य -महनुभावो और गुरुजनो के रस भावो का ही वर्णन है