-पुस्तक लोक-परलोक-सुधार
-लेखक श्री हनुमानप्रसाद पोदार जी
-प्रकाशक गीताप्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 190
-मूल्य 20/-
भाईजी (श्रीहनुमानप्रसादजी" पोद्दार) -के कुछ व्यक्तिगत पत्रों का संग्रह लोक-परलोकका सुधार (प्रथम भाग) -के नाम से कुछ सप्ताहपूर्व प्रकाशित" हुआ था । उसी संग्रह का दूसरा भाग भी प्रेमी पाठक पाठिकाओं की सेवामें प्रस्तुत है। इस भागमें प्राय उन्हीं विषयोंका समावेश है जिनकी चर्चा पहले भागमें आ चुकी है। इस प्रकार यह दूसरा भाग पहले भागका ही एक प्रकारसे पूरक होगा। दोनों भागोंको मिलाकर ही पढ़न चाहिये । पुस्तकका" आकार बड़ा न हो इसीलिये पत्रोंको दो भागोंमें विभक्त किया गया है। आशा है प्रेमी पाठक इस भागको भी उसी चाव से पढ़ेंगे । मेरा विश्वास है कि जो लोग इन पत्रों को मननपूर्वक पढ़ेंगे और उनमें आयी हुई बातोंको अपने जीवन में उतारने की ईमानदारी के साथ चेष्टा करेंगे, उन्हें निश्चय ही महान् लाभ होगा और उन्हें" लोक-परलोक" दोनोंका सुधार करने में यथेष्ट सहायता मिलेगी।