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29 Aug 2021

जीवन का सत्य

 

 

-पुस्तक           जीवन का सत्य

-लेखक           स्वामी रामसुखदास जी 

-प्रकाशक       गीताप्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या       94

-मूल्य              10/-

 

 

 

जो उत्पन्न हुआ है वह निश्चित ही काल का शिकार होगा। ... कितना भी बड़ा धर्मात्मा पुण्यात्मा क्यों न हो जो आया है उसे जाना ही होगा लेकिन यह बात भी परम सत्य है कि मनुष्य के कर्म उसे मृत्यु के बाद भी संसार में जीवित रखते हैं। धर्म और सदकर्म करने वाला व्यक्ति सदा याद किया जाता है।

इंसान के जीवन में जन्म से मृत्यु तक के सफर में तृष्णा, कामना तथा बाधाएं उत्पन्न होकर मानसिकता में असंतोष तथा भटकाव की स्थिति उत्पन्न कर देते हैं जिससे जीवन कष्टदायक व असंतुलित निर्वाह होता है। जीवन सत्यार्थ ऐसा प्रयास है जिसके द्वारा सत्य की परख करके कष्टकारी मानसिकता से मुक्ति पाकर जीवन संतुलित बनाया जा सकता है। पढने के साथ समझना भी आवश्यक है क्योंकि पढने में कुछ समय लगता है मगर समझने में सम्पूर्ण जीवन भी कम हो सकता है और समझने से सफलता प्राप्त होती है। 


श्री मद्भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि मानव जीवन का एकमात्र उद्देश्य आत्म-साक्षात्कार करना है। मनुष्य की आत्मा परम सत्य को जानने के बाद जीवन मुक्ति की अधिकारी हो जाती है और मनुष्य इस संसार समुद्र से पूर्णतया मुक्त होकर पुनः संसार चक्र में नहीं फँसता।