-पुस्तक मातृशक्ति का घोर अपमान
-लेखक श्री स्वामी रामसुखदास जी
-प्रकाशक गीताप्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 48
-मूल्य 5/-
यह पुस्तक परमश्रद्धेय स्वामी श्री रामसुखदास जी महाराज के प्रवचनों का
सुन्दर संग्रह है। इसमें मातृशक्ति का घोर अपमान, दहेज प्रथा से हानि,ढोल गवाँर सूद्र पसु नारी,मातृशक्ति का तिरस्कार,तथा मातृदेवो भव,आदि शीर्षकों पर स्वामी जी के प्रवचनों का संकलन प्रकासित किया जा रहा है।
वर्तमान में ऐसे भयंकर-भयंकर पाप हो रहे हैं कि सुनकर रोंगटे खड़े हो जायँ, आँखें डबडबा जायँ, हृदय द्रवित हो जाय ! राम-राम-राम, कितना घोर अन्याय, घोर पाप आप कर रहे हो, पर उधर आपका खयाल ही नहीं है ! मनुष्य शरीर को सबसे दुर्लभ बताया गया है‒
बड़े भाग मानुष तनु पावा ।
सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा ॥
ऐसे दुर्लभ मनुष्य-शरीर के आरम्भ को ही खत्म कर देना, काट देना जीवों के साथ कितना घोर अपराध है, कितना अन्याय है, कितना पाप है ! मेरे मनमें बड़ा दुःख हो रहा है, जलन हो रही है, पर क्या करूँ ! जिस मनुष्य-शरीर से परमात्मा की प्राप्ति हो जाय, उस मनुष्य-शरीर को पैदा ही नहीं होने देना, नष्ट कर देना पाप की आखिरी हद है ! किसी जीव को दुर्लभ मनुष्य-शरीर प्राप्त न हो जाय, किसी का कल्याण न हो जाय, उद्धार न हो जाय, इसलिये गर्भ को होने ही नहीं देना है, पहले ही दवाइयाँ लेकर नष्ट कर देना है, गिराकर नष्ट कर देना है, काटकर नष्ट कर देना है, गर्भस्राव करके नष्ट कर देना है, गर्भपात करके नष्ट कर देना है, भ्रूणहत्या करके नष्ट कर देना है; हमारा पाप भले ही हो, हम नरकों में भले ही जायँ, पर किसी को कल्याण का मौका नहीं मिलने देना है‒ऐसी कमर कस ली है ! अब मैं क्या करूँ ? किसको कहूँ ? और कौन सुने मेरी ? कोई सुनता नहीं ?