-पुस्तक पूर्ण समर्पण
-लेखक श्री हनुमानप्रसाद पोदार जी
-प्रकाशक गीताप्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 350
-मूल्य 35/-
श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश में पूर्ण समर्पण का महत्व बताते हुए कहते हैं, जो करो अपने लिए न करो। दूसरों के लिए करो। कर्तव्य का अभिमान मन में लेकर न करो। अपने लिए करोगे, तो कर्मफल के हेतु बनोगे और फंस जाओगे
यह पुस्तक आपको समर्पण का असली अर्थ बताकर आपकी सारी शंकाओं को विलीन करने की शक्ति रखती है। इस पुस्तक में आप पढ़नेवाले हैं
* तन-मन-धन के समर्पण का असली अर्थ क्या है?
* मजबूरी और स्वइच्छा से किए गए समर्पण में क्या अंतर है?
* ईश्वर या उच्च चेतना के प्रति पूर्ण समर्पण कैसे करें?
* समर्पण से सहज जीवन कैसे जीएँ?
* अपनी वृत्ति और विकारों के समर्पण से जीवन में प्रेम, आनंद, मौन कैसे लाएँ?
जिस तरह बिल्ली का बच्चा अपनी माँ के प्रति पूर्ण समर्पण दिखाता है, फिर बिल्ली माँ उसे जहाँ चाहे वहाँ उठाकर ले जाए, उसी तरह हमें भी ईश्वर माँ के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव रखना चाहिए। यही भाव सच्चे समर्पण का स्वाद है।