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26 Aug 2021

मानव-धर्म

 


 

-पुस्तक           मानव-धर्म

-लेखक           श्री हनुमान प्रसाद पोदार जी 

-प्रकाशक       गीताप्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या       94

-मूल्य               10/-

 

 

भारतीय ऋषिमुनियों और चिंतकों के मतानुसार सृष्टि में मानव से अधिक श्रेष्ठ और कोई नहीं। मनुष्य जीवन सृष्टि की सर्वोपरि कलाकृति है। ऐसी कायिक और मानसिक सर्वागपूर्ण रचना और किसी प्राणी की नहीं है। जब एक बार कोई मनुष्य योनि में आ जाता है तो मानवता उससे स्वयं जुड़ जाती है। इसका सर्वदा ध्यान रखना, उससे विलग न होना ही मानव जीवन की सार्थकता है। मानव की प्रतिष्ठा में ही धर्म की प्रतिष्ठा है। मानव को संतृप्त, कुंठित एवं प्रताड़ित करके कोई भी धर्म सामान्य नहीं हो सकता।  


मानव धर्म वह व्यवहार है जो मानव जगत में परस्पर प्रेम, सहानुभूति, एक दूसरे का सम्मान करना आदि सिखाकर हमें श्रेष्ठ आदर्शो की ओर ले जाता है। मानव धर्म उस सर्वप्रिय, सर्वश्रेष्ठ और सर्वहितैषी स्वच्छ व्यवहार को माना गया है जिसका अनुसरण करने से सबको प्रसन्नता एवं शांति प्राप्त हो सके। धर्म वह मानवीय आचरण है जो अलौकिक कल्पना पर आधारित है और जिनका आचरण श्रेयस्कर माना जाता है। संसार के सभी धर्मो की मान्यता है कि विश्व एक नैतिक राज्य है और धर्म उस नैतिक राज्य का कानून है। दूसरों की भावनाओं को न समझना, उनके साथ अन्याय करना और अपनी जिद पर अड़े रहना धर्म नहीं है। एकता, सौमनस्य और सबका आदर ही धर्म का मार्ग है, साथ ही सच्ची मानवता का परिचय भी।