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26 Aug 2021

मनुष्य जीवन की सफलता

 


 

-पुस्तक           मनुष्य जीवन की सफलता

-लेखक           श्री जयदयाल गोयन्दका जी 

-प्रकाशक       गीताप्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या       190

-मूल्य               20/-

 

 

 

मनुष्य को स्वाभाविक ज्ञान तो परमात्मा से प्राप्त है परन्तु उसे विशेष ज्ञान प्राप्त करने के लिये माता-पिता, आचार्य, शास्त्र आदि की आवश्यकता पड़ती है। मनुष्य जीवन में धर्म का ज्ञान व उसका पालन आवश्यक है। धर्म उसे कहते हैं जिसके ज्ञान व पालन से मनुष्य का सांसारिक जीवन तथा परलोक दोनों उन्नत व सफलता को प्राप्त होते हैं

 जाति का अर्थ यहां मनुष्य व पशु, पक्षी आदि अनेक जातियों से है। समस्त मनुष्य जाति एक ही जाति है। इस मनुष्य जाति के दो भेद स्त्री जाति व पुरुष जाति किये जा सकते हैं। वर्ण और जाति दो अलग-अलग शब्द हैं। वर्ण का अर्थ है चुनाव करना। इसके लिये हमें अपनी योग्यता बढ़ानी होती है तभी हम इष्ट का चुनाव कर सकते हैं। यदि हम ज्ञान व बल में हीन हैं तो हम क्षत्रिय के काम न करने से क्षत्रिय नहीं बन सकते। सेना में भर्ती होने के लिये न्यूनतम शिक्षा व शारीरिक बल आदि का होना आवश्यक माना जाता है अन्यथा सैनिक व सैन्य अधिकारी नहीं बन सकते। वेदों व ऋषियों के ग्रन्थों उपनिषद, दर्शन आदि में इसका उल्लेख नहीं है। देश के विधान द्वारा इस पर रोक लगाई जानी चाहिये ।