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25 Aug 2021

भगवत्प्राप्ति की अमूल्य बातें

 

-पुस्तक           भगवत्प्राप्ति की अमूल्य बातें

-लेखक           श्री जयदयाल गोयन्दका जी 

-प्रकाशक       गीताप्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या       128

-मूल्य              12/-

 

 

 कलयुग में बहुत-से भक्त हुए हैं। नरसी, सूरदास तुलसीदास जी, गौरांग महाप्रभु आदि जीवनी से प्रतीत होता है कि उनको भगवान् की प्राप्ति हुई थी। 

ईश्वर प्रेम से मिलते हैं, इसमें कोई देश, काल बाधक नहीं है। भगवान् सभी जगह हैं, वे सभी जगह मिल सकते हैं। यदि ऐसा होता कि भगवान् हरिद्वार में होते तो हरिद्वार में ही मिलते, लाहौर, अमृतसर में नहीं, परन्तु वे सब जगह हैं। उनके लिये कोई काल बाधक नहीं है। सतयुग में भगवान् का भजन, ध्यान करनेवाले अधिक थे, तब कानून कड़ा था। अब जब भजन करने वाले कम हुए तो कानून भी हलका हो गया।

सबसे बढ़कर भगवान् का भजन, ध्यान, नाम का जप और सत्-पुरुषों का संग है। पानी का जल, वाटर, नीर कुछ भी कहो एक ही बात है, इसी प्रकार हरि, राम, अल्लाह, गॉड एक ही बात है। भाषा अलग है, चीज वही है। हम को जो नाम अधिक रुचिकर हो वही हमारे लिये हितकर है। सभी भगवान् के नाम हैं।
जो निराकार के उपासक हों उनके लिये ॐ नाम बताया गया है। जो राम के उपासक हैं उनके लिए राम, कृष्ण के उपासक हो उनके लिये कृष्ण नाम है। वस्तु से दो चीज नहीं है, किन्तु एक ही सच्चिदानन्दघन परमात्मा कभी विष्णु रूप से, कभी राम रूप से, कभी कृष्ण रूप से प्रकट होते हैं, वस्तु एक ही है। विष्णुसहस्रनाम में भगवान् विष्णु के एक हजार नाम लिखे हैं। चाहे जिस नाम से उन्हें पुकारो। जिसको जिस नाम से प्राप्ति होती है, वह उसी नाम को श्रेष्ठ बताते हैं। नाम सब भगवान् के ही हैं।