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25 Aug 2021

भगवद्दर्शन की उत्कण्ठा

 


-पुस्तक          भगवद्दर्शन की उत्कण्ठा

-लेखक           श्री जयदयाल गोयन्दका जी 

-प्रकाशक      गीताप्रेस गोरखपुर

-पृष्ठसंख्या      222

-मूल्य             22/-

 

 

भगवद्दर्शन की उत्कट उत्कण्ठा उदित करने वाली ‘द्वा सुपर्णा श्रुति की परम आह्लदिनी व्याख्या की गई है। कुन्ती कृत श्रीकृष्णस्तुति के सन्दर्भ में भगवदाविर्भाव के अनन्यथासिद्ध प्रयोजन पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। ‘आत्मा रामचित्ताकर्षक भगवद्-गुण-गणों से आकृष्ट अमलात्मा महा मुनीन्द्र परमहंसों की भी भगवद्भक्ति में प्रवृत्ति’ का रहस्योद्घाटन भी अद्भुत ढंग से ही हो पाया है। यहाँ तक की ‘इन्द्रियों की सार्थकता सगुण-साकार श्रीकृष्ण चन्द्र परमानन्दकन्द के अविर्भाव से ही संभव है’ यह अनुपम रस-रहस्य भी समारोहपूर्वक व्यक्त किया गया है। पंचम दिन के प्रवचन में शुक-समागम के सन्दर्भ में इस रहस्य का समाकर्षक चित्रण किया गया है बिम्बरूप परमात्मा की आराधना से ही प्रतिबिम्ब रूप जीवों की शोभा और सद्गति संभव है।

प्रभु वडे दयालू और उदारचित है। वे थोडे प्रेम से प्राप्त हो सकते हैं।