Showing posts with label dharmaek books. vrij bhaktmaal. brijdham. swami ramsukh dash ji.Spiritual books. Bhakti. gitapress gorakhpur.. Show all posts
Showing posts with label dharmaek books. vrij bhaktmaal. brijdham. swami ramsukh dash ji.Spiritual books. Bhakti. gitapress gorakhpur.. Show all posts

22 Sept 2021

वृज भक्तमाल

 


-पुस्तक              वृज भक्तमाल

-लेखक              श्रीभक्तमाल दास जी भक्तमाली

-प्रकाशक          रस भारती संस्थान वृन्दावन

-पृष्ठसंख्या           248

-मूल्य                  101/-

 

 

श्री धाम वृंदावन की महिमा अपार है। जो वृंदावन आते समय भी मार्ग में मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। उनको भी किसी ना किसी रूप में ब्रज का वास मिल जाता है। पशु -पक्षी या वृक्ष आदि बनकर तपस्या करते हैं। जिनका शरीर धाम में छूटता है उसके बारे में तो कहना ही क्या ? ब्रजमोहनदास जी के समय में अदभुत घटना घटी। तीन समव्यस्क लड़के बंगाल से वृंदावन आने के लिए उत्कंठित थे। एक धनी परिवार का लड़का था। जिसे पिता जी ने पाव भर चावल की व्यवस्था रोज के लिए करा दी थी। दूसरे ने कहा -मैं चावल पकने के बाद चावल का मांड ही पी लूंगा। तीसरे ने कहा – मैं चावल पकाने से पहले जो धोवन जल है। उसे पी लूंगा। तीनों लड़कों की अद्भुत उत्कंठा वृंदावन के लिए। वहां से वृंदावन के लिए चल पड़े। संयोगवश मार्ग में पथ- परिश्रम एवं भूख-प्यास के कारण तीनों का शरीर शांत हो गया। कई दिनों तक पुत्रों की कोई सूचना न मिलने पर माता- पिता वृंदावन खोजने के लिए आए। बहुत प्रयास करने पर भी कोई समाचार नहीं मिला।
                 
तब किसी के कहने पर ब्रजमोहनदास जी के पास आए। ब्रज मोहन दास जी से प्रार्थना की तो एक क्षण मौन रहकर बोले- वैराग्य के अनुरूप तीनों को उत्तरोत्तर श्रेष्ठ जन्म मिला है। जिसने चावल खाकर ब्रजवास करने की इच्छा व्यक्त की वह बबूल का वृक्ष बना, जिसने मांड पीकर वह बेर और जिसने धुला जल पीकर वह वृक्षराज अश्वत्थ हुआ। तीनो यमुनाजी के किनारे भजन कर रहे हैं। सबने जाकर देखा तीनों वृक्ष खड़े हैं। लेकिन विश्वास नहीं हुआ तो स्वपन में तीनों पुत्रों ने अपने पिताओं को कहा- पिताजी ! हम तीनों श्री किशोरी जी की अहैतु की कृपा से यहां भजन कर रहे हैं। आप बाबा के वचनों पर संदेह न करें ।

  एक बार रामहरिदास जी महाराज ने पूछा – महाराज जी ! क्या ये सत्य है –

*वृंदावन के वृक्ष को मरम न जाने कोय।*
     *डार- डार अरु पात पात में राधे राधे होय।*