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21 Aug 2021

बृज के संत

 


-पुस्तक          बृज के संत

-लेखक          श्रीश्यामदास जी महाराज

-प्रकाशक      श्री हरिनाम संकीर्तन वृन्दावन

-पृष्ठसंख्या      464

-मूल्य             300/-

 

 

चैतन्य संप्रदाय को गौड़ीय संप्रदाय भी कहा जाता है। इसके प्रवर्तक नित्यानंद प्रभु हैं।

 नित्यानंद प्रभु (जन्म:१४७४) चैतन्य महाप्रभु के प्रथम शिष्य थे। इन्हें निताई भी कहते हैं। इन्हीं के साथ अद्वैताचार्य महाराज भी महाप्रभु के आरंभिक शिष्यों में से एक थे। ... इनके माता-पिता, वसुदेव रोहिणी के तथा नित्यानंद बलराम के अवतार माने जाते हैं

 

बृज मे जन्म लेने वाले या यहॉ आकर निवास करने वाले सभी संतो का वर्णन किया है। 

इस ग्रन्थ के तीन भाग हैं-

1 बृज के संत

2 श्री चैतन्य भक्तगाथा

3 हमारे छःगोस्वामी 

 

श्री चैतन्य के पुरवाज़, गुरुवर्ग, छह गोस्वामी, परिकर स्वरूप विभीन भक्तो के चमत्कारी जीवन चरित्र का वर्णन किया गया हैं। 



 

इसी आधार पर किसी भी जीव को कष्ट या प्रताड़ना देना ठीक नहीं। स्वामी वल्लभाचार्य ने विष्णु और शिव के भेद को पाटने का प्रयास किया। उनके बाद आने वाले रामानुज ने राम भक्ति को केंद्र में रखा। यदि भारत में राम और कृष्ण की भक्ति की धारा बहती है तो उसका श्रेय रामानुज और वल्लभाचार्य को है। वल्लभाचार्य जी ने 'श्रीकृष्ण: शरणं ममं' मंत्र दिया। यही नहीं आज के ब्रज को बनाने में वल्लभाचार्य जी की भूमिका रही है। वल्लभाचार्य ने पुष्टिमार्ग का प्रतिपादन किया था। उन्होंने इस मार्ग पर चलने वालों के लिए वल्लभ संप्रदाय की आधारशिला रखी।

https://www.haribhoomi.com/astrology_and_spirituality/know-the-interesting-facts-about-saint-vallabhacharya-in-hindi