-पुस्तक वेद-कथांङ्क (कल्याण)
-लेखक हनुमानप्रसाद पोदार
-प्रकाशक गीताप्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 688
-मूल्य 220/-
वेद (संस्कृत: वेद, “ज्ञान”) प्राचीन भारतीय ऋषियों ध्यान के माध्यम से
प्राप्त ज्ञान है यो 4 ई.पू से 3 सहस्राब्दी की अवधि में मौखिक रचित, असल
में पूजा और प्रार्थना का एक संकलन। वेदों प्राचीन भारतीय उप-महाद्वीप की
उद्भव ज्ञान का एक बड़ा स्रोत हैं ग्रंथों के रूप मे और हिंदू धर्म के
प्राचीनतम शास्त्रों। वेदों को “मानव रहित निर्मित” (“लोगों द्वारा नहीं
लिखा है”) माना जाता है। हिंदुओं का मानना है, भगवान वेदों का परमेश्वर है।
हिंदुओं का मानना है, वेद उच्चतम देवता भगवान (ब्रह्मा) द्वारा ऋषियों
दिया गया था और भगवान वेदों का परमेश्वर है। तो वेदों के दूसरा नाम “श्रवण ”
(जो सुना दिया गया है)।
वे परब्रह्म परमात्मा वेदोकी रहस्यविद्या-रूप उपनिषदोमे छिपे हुए हैं, वेद
निकले भी उन्हीं परब्रह्मसे है। वेदोके प्राकटय-स्थान उन परमात्माको
ब्रह्माजी जानते हैं। उनके सिवा और भी जिन पूर्ववर्ती देवताओ और ऋषियोने
उनको जाना था, वे सब-के-सब उन्हींमे तन्मय होकर आनन्दस्वरूप हो गये। अत
मनुष्यको चाहिये कि उन सर्वशक्तिमान्, सर्वाधार, सबके अधीश्वर वेदपुरुष
परमात्मप्रभुको जानने और पानेके लिये तत्पर हो जाय।
वेदों को मानव रहित निर्मित माना जाता है। हिंदुओं का मानना है कि भगवान वेदों के परमेश्वर है। वेदो के प्रगट्या के बारे में ब्रह्माजी जानते हैं। ब्रह्माजी के सिवा और भी जिन देवताओ और ऋषियोने वेदो को जाना था, वो सब उस में तन्मय होकर आनन्द स्वरूप हो गये।