-पुस्तक अमृत के घूँट
-लेखक रामचरण महेन्द्र जी
-प्रकाशक गीताप्रेस गोरखपुर
-पृष्ठसंख्या 202
-मूल्य 30/-
हमारा सुधार क्यों नहीं होता? हम क्यों मोह निद्रा में पड़े रहते हैं? वास्तवमें हमें अपनी त्रुटियों और कमजोरियोंका ज्ञान ही नहीं होता! जो व्यक्ति किसी भी प्रकारकी नैतिक भूल करता है, उस अल्पज्ञको यह ज्ञान नहीं होता कि वह गलत राहपर है । अन्धकारमें वह गलत राहपर आगे बढ़ता ही चला जाता है । अन्तमें किसी कठोर शिलासे टकरानेपर उसे अपनी गलती या दुर्बलताका ज्ञान होता है और तब ज्ञानके चक्षु एकाएक खुल जाते हैं । यहींसे उन्नतिका प्रभात प्रारम्भ हो जाता है ।
जो अपनी दुर्बलताका दर्शन करता है, उसके लिये सच्चा पश्चात्ताप कर उसे दूर करनेकी इच्छासे सतत उद्योग प्रारम्भ करता है, उसका आधा काम तो बन गया ।
दुर्बलताके दर्शन, सच्ची आत्मग्लानि, फिर उस दुर्बलताको हटानेकी साधनायही हमारी उन्नतिके तत्त्व हैं । जिसका मन गलत राहसे हटकर सन्मार्गपर आरूढ़ हो जाता है उसीको आध्यात्मिक सिद्धियाँ मिलनी प्रारम्भ हो जाती हैं । हमारे वेदोंमें ऐसे अनेक अमूल्य ज्ञानकण बिखरे पड़े हैं, जिनमें मनकी कल्याणकारी मार्गपर चलनेके लिये प्रार्थनाएँ की गयी हैं
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